गुरुवार, अप्रैल 22, 2010

ये जिस्म का है या रूहों का मिलन

>तेरे अधरों का रस चूमने को
बेकरार थी तेरी लट भी..
जब तू खोयी थी अपने सपनों में
खनकी थी तब तेरी चूङी
तूने किस अहसास से लव खोले थे..
ये मैं हूँ कि मैं नही हूँ..
ये तुम हो कि तुम नहीं हो
ये हम है कि हम नहीं है
ये जिस्म का है या रूहों का मिलन
क्यूं लग रहा है
मैं जन्मों की प्यासी हूँ सनम..
वो हमारे मिलन की
क्या हसीन रात थी
मैं बनी हूँ सिर्फ़ तेरे लिये
ए मेरे सरताज ए मेरे प्रियतम
अब ये तन मन तो बस तेरा है
ये होठों की लाली ये आंखो का काजल
ये रूप ये रंग ये यौवन
मेरे सीने की हर एक धङकन
ये रूह से उठती सदाएं
कह रहीं है सुन जरा
मैं तेरी हूँ मैं तेरी हूँ
खो जाने दे मेरे जुनून को

तेरे अस्तित्व में..तुझ में
जैसे खो गया है तू अपने से
मेरे मैं ..दूर तक मुझ में
ये शीतल चाँदनी रात..साजन
मिलने दे मन को ..मन से
तन को ..तन से
यूँ होने दे रूह से रूह का मिलन

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