शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

शेरा । जूली....1

30 जुलाई 2010 को शाम के छह बजे हैं । मैं लगभग हमेशा की ही तरह अपने घर के सामने सडक पर बैठा हूं । महज 300 मीटर की यह सडक हमारे घर के तीस मीटर आगे जाकर बन्द है । अतः आम सडकों जैसा इस पर आवागमन नहीं रहता । सडक के पार लगभग 80 मीटर चौडी और 200 मीटर लम्बी जगह खाली प्लाट के रूप में है । जिसमें उनके मालिक बगीचे और क्यारियां आदि बनाकर सब्जी उगाते हैं । मेरे घर के ठीक साइड में 20 बाइ 50 मीटर का प्लाट बिजली के हाईटेंशन पोल होने की वजह से खाली पडा रहता है । जिसमें प्राकृतिक रूप से पेड पौधे उगे हुये हैं । इस तरह घर के आसपास प्राकृतिक और खुला वातावरण स्वतः ही है । इसलिये हम सडक का इस्तेमाल एक खूबसूरत लान की तरह करते हैं ।
तो 30 जुलाई की शाम को मैं सडक पर बैठा हूं । और सब कुछ रोजाना जैसा ही है । बच्चे खेल रहें हैं । लोग आ जा रहे हैं । मगर एक कमी है । जिसको मैं बार बार महसूस कर रहा हूं । मुझे आज शेरा दिखाई नहीं दे रहा । शेरा मेरे कुत्ते का नाम है । आज शेरा कहां चला गया ? जब मैं रोजाना बैठता था । वह पूंछ हिलाता हुआ मेरे पास आकर प्यार जताता था । मेरे द्वारा हाथ से सहला देने से ही बेहद अपनत्व महसूस करता था । कभी इधर । कभी उधर दिखाई देता था । पर आज कहां चला गया । घर वाले । आसपास के बच्चे भी शेरा शेरा नहीं कर रहे । आखिर शेरा कहां चला गया ? आज से ढाई साल पहले मेरे रिश्तेदार राजेश की कुतिया टफ़ी ने सात खूबसूरत पिल्लों को जन्म दिया ।
जिनमें से एक जोडा मेरे घरवाले लाये । रुई के खिलौने जैसे बेहद सुन्दर दिखने वाले छोटी नस्ल के इन पिल्लों का नाम नर । मादा के हिसाब से हमारी किरायेदार महेश्वरी द्वारा शेरा । जूली रखा गया । विभिन्न क्रीडाओं को करते हुये । सबका दिल बहलाते हुये । शेरा । जूली भी धीरे धीरे बडे होने लगे । और सबको घर के सदस्य जैसे ही लगने लगे । लगभग एक साल बाद जब मैं आगरा स्थिति अपने घर में रहने आ गया । तो शेरा जूली भी हमारे साथ थे । कहते हैं । संयोग वियोग पहले से ही निर्धारित होता है । इधर उधर भागते । उछलते । कूदते । खेलते । शेरा जूली घर में उदासी जैसा माहौल आने ही नहीं देते थे । लेकिन होनी की बात । घर वालों का मन बन गया कि एक ही कुत्ता ठीक है । दो की देखरेख में परेशानी होती है । अतः एक किसी को दे दिया जाय । हालांकि कुछ जानकारों ने सलाह भी दी । कि कुत्ता बचपन से जिस घर में पलता है । वहां से बिछड जाने पर जीवित नहीं रहता । क्योंकि बेहद वफ़ादार और प्रेम करने वाला ये जानवर अपने पहले " परिवार " को कभी भूल नहीं पाता । पर होनी
भी अपनी जगह प्रवल होती है । हमारे एक परिचित सत्यदेव की कुतिया मर गयी थी । उससे पहले उनकी युवा लडकी एक एक्सीडेंट में मर गयी थी । लडकी के मरते ही कुतिया बेहद उदास रहने लगी ।
उसने धीरे धीरे खाना पीना छोड दिया और अंततः वह भी पूरी वफ़ादारी निभाते हुये दो महीने बाद ही मर गयी । क्योंकि कुतिया लडकी से अन्य की अपेक्षा अधिक प्रेम करती थी । इन दोनों के असमय मौत से सत्यदेव की पत्नी बेहद दुखी रहने लगी । और इधर हमारे घर में ऐसे हालात बन गये कि एक ही कुत्ते को रखने का निर्णय सबको ठीक लगा । अतः शेरा की जोडी जूली सत्यदेव को दे दी गयी । वे दूसरे शहर में रहते थे । बेचारी जूली को कुछ नही पता था कि अगले कुछ क्षणों में उसके साथ क्या होने वाला है ।
लेकिन होनी और मानव स्वभाव बडा विचित्र है । हमें अपना स्वार्थ ही अपना फ़ायदा ही सब कुछ दिखाई देता है । इससे दूसरे के जीवन पर क्या प्रभाव होगा । ये हम नहीं सोच पाते हैं । जूली की विदाई का समय आ गया । हालांकि सबको दुख हो रहा था । फ़िर भी उसे बिस्कुट आदि खिलाकर सबने हाथ से सहलाकर प्यार किया और मारुति वैन में बिठाने लगे । हकबकाई जूली इन नयी परिस्थितियों से भयभीत सी हो रही थी । और बार बार हम लोगों की तरफ़ देख रही थी । मानों कह रही हो । क्यों मुझे इस घर से निकाल रहे हो ? क्यों मेरे साथी से जुदा कर रहे हो ? पर जानवर बेचारा बेबस होता है । वैन में बैठकर उसने खिडकी के शीशे से बेहद करुणा भरी दृष्टि से " अपने घर " हम सबको देखा । सबकी आंखों में आंसू आ गये । वैन एक झटके से आगे बड गयी । हमारे " क्षणिक " आंसू शीघ्र सूख गये । पर जूली के आंसू बहते रहे ( बाद में सत्यदेव ने मुझे बताया ) । शेरा वैन के पीछे पीछे जूली के लिये दूर तक दौडा । और अंत में आकर हम लोगों के पास " हों..हों " की दुखभरी आवाज निकालते हुये पूछ्ने लगा कि क्यों तुमने जूली को भेज दिया । क्या उसकी चार रोटियां ही ज्यादा खर्च बडाती थी ? वास्तव में इस कटु सत्य का हमारे पास कोई उत्तर नहीं था । बेबस जानवर उदास होकर एक कोने में बैठ गया । अब उसके साथ
खेलने वाला उसका जैसा कोई नहीं रहा । तीन चार दिन तक उसने ठीक से कुछ खाया पीया भी नहीं । उछलकूद भी नहीं की । फ़िर जैसा कि इंसान बडे से बडा दुख भूल जाता है । कुछ दिनों में स्थिति सामान्य हो गयी । जूली की याद हल्की होने लगी । हालांकि शेरा उसे अन्दर से नहीं भूल सका । सत्यदेव के घर में जूली को बहुत प्यार से रखा गया । पर इसके बाबजूद वह हम सबको नहीं भूल पायी । एक महीने के बाद ही उसका खाना पीना कम हो गया । और दो महीने में ना के बराबर । फ़िर वह उदास एक ही स्थान पर बैठी रहती । खाना खाना बिलकुल बन्द । और जैसा कि मुझे आभासित था । तीन महीने भी पूरे नहीं हुये । जब वह इस निष्ठुर संसार से विदा हो गयी । यहां मैंने अदृश्य प्रेम का साक्षात उदाहरण देखा । जूली के अंतिम समय में शेरा ने उसके सामने न होते हुये भी खाना नहीं खाया और उदास रहा । और उसकी मृत्यु के समय वह छत वाले कमरे में जाकर रोया । और देर तक रोता रहा । इससे ज्यादा एक जानवर बेचारा क्या कर सकता है ? निश्चय ही जूली अपने अंतिम समय तक शेरा को हम सबको याद करती रही । कि शायद उसके " घरवाले " एक बार फ़िर से उसे लेने आ जाय । मैंने जब उसकी बीमारी
की खबर फ़ोन पर सुनी । तो मैंने कहा भी । उसे ले आओ । लेकिन घर वाले नहीं माने । हमने उसे छोड दिया । पर वो हमको दिल से नहीं निकाल सकी और इस असार संसार से विदा हो गयी ।
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शेरा का जाना ...2

जिसने जन्म लिया है उसको निश्चित मरना है । शेरा अब अकेला था । घर के लोग बिजी रहते थे । एक पालतू जानवर की क्या इच्छा होती है । इससे बहुत कम इंसानों को मतलब रहता है । शेरा ने भी नई परिस्थितियों में खुद को ढाल लिया था । जिस गेट पर कभी दोनों साथ बैठते थे । वहां अकेला बैठा हुआ
वह आने जाने वालों को देखता रहता था । धीरे धीरे छह महीने और गुजर गये । घर के व्यस्त लोगों की हालत से वाकिफ़ होकर उसने जिंदगी से समझौता कर लिया और स्वभाव से एकाकी होने लगा । फ़ुरसत के पलों में जब कभी उसे बुलाते । कभी हमें इकठ्ठा देखकर वह स्वयं ही आ जाता । और घर के किसी सदस्य द्वारा हाथ फ़िराने पर प्रेम से पूंछ हिलाते हुये दोहरा होने लगता ।...ये सब बातें आज मुझे याद आ रही थी । ढाई साल का पूरा घटनाक्रम मेरे आगे रील की तरह घूम रहा था । जब शेरा हमें छोडकर चला गया था । कहां चला गया था शेरा ?
सडक पर बैठे बैठे जब आज मुझे शेरा दिखाई नहीं दे रहा । तब मुझे उसकी अहमियत समझ में आ रही थी । एक जीव जिसमें सभी भावनाएं हमारे ही समान थी । बल्कि प्रेम के मामलों तो जानवर हमसे चौगुना प्रेम करते है । यह बात ठीक से वही लोग समझ सकते हैं । जिनके घर कुत्ता या कोई जानवर पला हुआ हो ।
वास्तव में हम इतने बिजी भी नही थे । बल्कि अपने स्वार्थ में मस्त थे । तब हमें उसका कोई महत्व समझ में नहीं आता था पर आज आ रहा था । आज बेधडक लोग हमारे घर में घुस रहे थे । क्योंकि उन्हें रोकने वाला जा चुका था । आज यों ही हम अपने कामों में लगे हुये थे । क्योंकि बार बार आकर हमें आकर्षित करने वाला शेरा जा चुका था । निश्चय ही उसकी ये कमी बेहद खल रही थी । मां भी सब कुछ जानते हुये आज मानों भूल गयीं थी । और कह रही थी । कि ये शेरा की रोटी है । दूध मिलाकर खिला दो । पर किसे खिलाते । खाने वाला जा चुका था ?
आज से ठीक एक महीने पहले की बात है । शेरा सुस्त रहने लगा था । पर हमने कम ही ध्यान दिया था । वह सुस्ती के बाद भी अपनी आगन्तुकों को रोकने आदि की ड्यूटी पूरी तरह से निभाता था । लेकिन ज्यादा एकाकी और सुस्त हो गया था । माता पिता ने कहा भी कि शेरा ज्यादा सुस्त रहने लगा है । पर बात आयी गयी ही हो गयी । अब वह अक्सर छत के कमरे में अकेला । बाहर के कमरे में अकेला एक कोने में बैठा रहता । और कमजोर रहने लगा था । हम लोगों के बुलाने पर आ जाता । पर उसके उत्साह में वो बात नहीं थी । खाना भी बेहद कम खाने लगा था । मैंने घर वालों से कहा । किसी भी जीव की जिंदगी में खालीपन हो । कोई उद्देश्य न हो । कोई सुख दुख
का साथी न हो । कोई बात करने वाला न हो । खेलने वाला न हो । इन चीजों के कोई विकल्प न हों । तो स्वाभाविक जीव जीते जी ही मरना शुरू हो जाता है । लेकिन ये सब जानते हुये भी हम किसी के लिये कुछ नहीं कर सकते । क्योंकि इस सबके लिये एक बलिदान की । एक समभई की आवश्यकता होती है । सबकी भावनाओं को समझने । उसे सुख पहुंचाने का प्रयत्न करने पर ही सब कुछ सही रह सकता है ।
जिसे वो जानवर तो अपने कर्तव्य और व्यवहार के तौर पर बखूबी निभा रहा था । पर हम व्यर्थ के प्रपंचो में उलझे इंसान नहीं निभा पाते । लिहाजा इसका परिणाम निश्चित हो जाता है । आज से ठीक आठ दिन पहले की बात है । शेरा ने खाना पीना ना के बराबर कर दिया था । अब उसके शरीर में पहले जैसी शक्ति न रह गयी थी । फ़िर भी कोई आहट होते ही वह भौंक कर बाहर आ जाता था । कमजोर होने के बाद भी अपनी ड्यूटी पूरी मुस्तैदी से निभा रहा था । ठीक चार दिन पहले । शेरा का खाना पीना बिलकुल छूट गया था । अब वह लडखडा कर बडी मुश्किल से
मल मूत्र त्याग के लिये जा पाता था । वह चलते में गिर पडता था । उसे सहारा देना पडता था । और अक्सर उठाकर लाना पडता था । वह पानी तक नही पीता था । और बुलाने पर उदास भाव से देखता था । मानों ये शिकायत करने में भी उसे ग्लानि हो रही हो कि पहले तुम लोगों ने कोई ध्यान नहीं दिया । अब शायद इस घर से मेरी विदाई का वक्त आ गया । अब मैं क्या कर सकता हूं ?
दो दिन पूर्व । उसे बेहद दिक्कत होने लगी । अपने ऊपर भिनभिनाती मक्खियों को भी उडाने में वह असमर्थ
हो गया था । और बैठने में भी गिर पडता था । मैंने एक पतला कपडा उसको ओडा दिया और टेबल फ़ेन उसके पास लगा दिया । तीन दिन से उसकी आवाज निकलनी बन्द हो गयी । और अब वह सिर्फ़ इस कष्टदायक जीवन से छुटकारा पाने के लिये मौत का इंतजार कर रहा था । आखिर 30 जुलाई को सुबह 11 बजे जब मैं कम्प्यूटर पर बैठा था । मुझे उसकी हल्की सी डरावनी आवाज सुनाई दी । सम्भवतः उसके लेने वाले आ गये थे । मां ने पिताजी से कहा । देखना । लगता है । शेरा चला गया । हम दोनों लोग तेजी से उसके पास पहुंचे । उसकी सांसे थम चुकी थी । और हम अपनों से बेगाना हुआ वह अग्यात यात्रा पर हमें बिना बताये ही चला गया था । मेरे घर के पीछे ही कच्ची जमीन में उसको समाधि दे दी गई । तब उसके हमेशा के लिये चले जाने के बाद हम सबको उसकी याद आ रही थी । इधर उधर से आता दिखाई देने वाला शेरा आज कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा था । उसकी रस्सी एक तरफ़ पडी थी । उसकी सारी चीजें एक तरफ़ पडी थीं । पर उनको इस्तेमाल करने वाला किसी अग्यात देश को जा चुका था ।

सोमवार, जुलाई 26, 2010

मन पाप का भण्डार है ।

मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन । आदत बुरी सुधार लो बस हो गया भजन ॥
आऐ हो तुम कहाँ से जाओगे तुम जहाँ । इतना सा विचार लो बस हो गया भजन ॥
कोई तुम्हें बुरा कहे तुम सुन करो क्षमा । वाणी का स्वर संभार लो बस हो गया भजन ॥
नेकी सबही के साथ में बन जाये तो करो । मत सिर बदी का भार लो बस हो गया भजन ॥
कहना है साफ साफ ये सदगुरु कबीर का । निज दोष को निहार लो बस हो गया भजन ॥
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सुर की गति मैं क्या जानूँ । एक भजन करना जानूँ ।
अर्थ भजन का भी अति गहरा । उस को भी मैं क्या जानूँ ।
प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानूँ । नैना जल भरना जानूँ ।गुण गाये प्रभु न्याय न छोड़े । फिर तुम क्यों गुण गाते हो । मैं बोला मैं प्रेम दीवाना । इतनी बातें क्या जानूँ ।
प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानूँ । नैना जल भरना जानूँ । फुलवारी के फूल फूल के । किसके गुन नित गाते हैं ।
जब पूछा क्या कुछ पाते हो । बोल उठे मैं क्या जानूँ । प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानूँ । नैना जल भरना जानूँ
हर सांस में हर बोल में । हरि नाम की झंकार है । हर नर मुझे भगवान है । हर द्वार मंदिर द्वार है ।
ये तन रतन जैसा नहीं । मन पाप का भण्डार है ।
पंछी बसेरे सा लगे । मुझको सकल संसार है । हर डाल में हर पात में । जिस नाम की झंकार है ।
उस नाथ के द्वारे तू जा । होगा वहीं निस्तार है । अपने पराये बन्धुओं का । झूठ का व्यवहार है ।
मन के यहां बिखरे हुये । प्रभु ने पिरोया तार है ।
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" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । "" सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

प्यारे तुम बिनो रहो ना जाय ।

दरशन दीजो आय ।
प्यारे दरशन दीजो आय । प्यारे तुम बिनो रहो ना जाय । जल बिनु कमल । चंद्र बिनु रजनी । वैसे तुम देखे बिनु सजनी ।
आकुल व्याकुल । फिरूं रैन दिन । विरह कलेजो खाय । दिवस न भूख । नींद नहीं रैना । मुख सों कहत न आवे बैना ।
कहा कहूँ । कछु समझ न आवे । मिल कर तपत बुझाय । क्यूं तरसाओ । अंतरयामी । आय मिलो। किरपा करो स्वामी ।
मीरा दासी जनम जनम की । पड़ी तुम्हारे पाय ।
नैया पड़ी मंझधार । नैया पड़ी मंझधार ।
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गुरु बिन कैसे लागे पार । साहिब तुम मत भूलियो । लाख लो भूलग जाये ।
हम से तुमरे और हैं । तुम सा हमरा नाहिं ।
अंतरयामी एक तुम । आतम के आधार ।
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी । कौन उतारे पार । गुरु बिन कैसे लागे पार । मैं अपराधी जन्म का । मन में भरा विकार ।
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार । अवगुन दास कबीर के । बहुत गरीब निवाज़ ।
जो मैं पूत कपूत हूं । कहौं पिता की लाज । गुरु बिन कैसे लागे पार ।
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" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । " " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

जैसा जिस का काम । पाता वैसे दाम ।

नैन हीन को राह दिखा प्रभु । पग पग ठोकर खाऊँ मैं । तुम्हरी नगरिया की । कठिन डगरिया ।चलत चलत गिर जाऊँ मैं । चहूँ ओर मेरे घोर अंधेरा । भूल न जाऊँ द्वार तेरा ।
एक बार प्रभु हाथ पकड़ लो । मन का दीप जलाऊँ मैं ।
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हारिये न हिम्मत । बिसारिये न राम ।
तू क्यों सोचे बंदे । सब की सोचे राम । हारिये न हिम्मत । दीपक ले के हाथ में । सतगुरु राह दिखाये ।
पर मन मूरख बावरा । आप अँधेरे जाए । पाप पुण्य और भले बुरे की । वो ही करता तोल ।
ये सौदे नहीं जगत हाट के । तू क्या जाने मोल । जैसा जिस का काम । पाता वैसे दाम ।
तू क्यों सोचे बंदे । सब की सोचे राम ।
" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । " " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

शुक्रवार, जुलाई 23, 2010

सडक छाप साधुओं के चमत्कार

लेखकीय-- सडकों के किनारे । गली मोहल्लों में । आपने अक्सर साधुओं को चमत्कार करते हुये देखा होगा । इन चमत्कारों के पीछे कुछ रसायनों का कमाल होता है । आईये इनके बारे में जानते हैं ।
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हड्डी पर फ़ास्फ़ोरस या गन्धक लगाकर सुखा दें । बाद में पानी के छींटे मारने पर धुंआ निकलता है ।
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अलमुनियम के सिक्के पर मरक्यूरिक क्लोराइड का घोल चडा दें । पानी से गीली हथेली में पकडने से सिक्का राख में बदल जाता है ।
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आक के दूध से हाथ पर " राम " लिखें ।इसके बाद सुखा लें । बाद में राख मलने पर अदृश्य लिखा हुआ " राम " चमकने लगेगा ।
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चमकीली पन्नी में सोडियम का चूर्ण लगायें । मिट्टी के तेल से भिगोये हुये रूमाल के बीच में रखें । मिट्टी के तेल के सम्पर्क में नहीं जलेगा । लेकिन गीले हाथ में आते ही जल उठेगा ।
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फ़ास्फ़ोरस मुंह में रखकर बाहर थूक देने पर जल उठता है ।
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आईये कुछ वास्तु के वारे में जानें ।
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पवन घन्टी ( विन्ड चाइम ) उत्तर - पश्चिम में लटकायें ।
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ड्रेगन की फ़ोटो । कम रोशनी । गोल कोने । प्रेम करते पक्षी का जोडा या जानवर शुभ माने जाते हैं ।
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मछली । नौ गोल्ड फ़िश । एक काले रंग की । या पानी में तैरती डाल्फ़िन । शुभ होती है ।
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मांगलिक चिह्न । ओउम । ॐ । त्रिशूल । शुभ लाभ । स्वास्तिक । उल्टी सूंड के गणेश । हंसते हुये बुद्ध ।
मोटे । गंजा । हंसता हुआ आदमी । मेढक । तीन टांग का घर में अन्दर जाते हुये शुभ माना गया है ।
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पेढ । सफ़ेद फ़ूल वाला आक । तुलसी । चंपा । चमेली । सदाबहार आदि शुभ माने गये हैं ।

सोमवार, जुलाई 19, 2010

विनय शर्मा @ आत्म विश्लेषण


लेखकीय-- गाजियाबाद के ब्लागर श्री विनय शर्मा के ब्लाग पर कई बार गया । पर किसी तकनीकीकारणवश " मेरे बलोग " नामक वह ब्लाग मेरे सिस्टम पर नहीं खुलता था । आखिर कई बार के प्रयास
के बाद मैंने श्री शर्मा जी को email किया । और अगली बार जब ब्लाग पर गया तो ब्लाग खुल गया । sunday का दिन था । विनय जी के लेखों को पडना शूरू किया तो पडता ही चला गया । उनकी कई
शहरों की जीवनी से लेकर । उनकी पत्नी की नस खिंच जाना । उनकी इंगलेंड की प्रथम हवाई यात्रा । उनकी भक्ति के अनुभव । सामाजिक जीवन के अनुभव । पिता जी से उनके भावनात्मक सम्बन्धों पर उनका दृष्टिकोण आदि लगभग सभी लेखों को एक ही बार में पड डाला । विनय जी स्वयं जिस प्रकार के सीधे सरल इंसान हैं । उसी सरल अंदाज में अपनी बात कहतें हैं । किसी मासूम बच्चे सी उनकी सरलता दिल को छू जाती है । इसका अंदाज आप इसी बात से लगा सकते हैं । कि 56 साल के हो चुके विनय जी को आज भी कहीं ये कसक है कि उनके पिता ने उनके बालमन को समझने में भूल की । क्या ये साबित नहीं करता कि वही मासूम बच्चा आज भी उनके मन में छुपा बैठा है । खैर उनका ये " आत्म विश्लेषण " वाला लेख मुझे काफ़ी अच्छा लगा । जिसे में विनय जी की ना जानकारी में उपयोगी समझते हुये अपने पाठकों के लिये प्रकाशित कर रहा हूं । मुझे यह आशा है कि विनय जी मेरी इस धृष्टता को अन्यथा नहीं लेंगे । तो पडें ये लेख । आत्म विश्लेषण । साभार । श्री विनय शर्मा । मेरे बलोग ।

आत्म विश्लेषण स्वयं को स्वयं से अलग करके ईमानदारी के साथ अपना विश्लेषण करना है ।मनुष्य के भीतर अनेको भाव समाहित होते है कहते हैं परिवर्तन ही विश्व का नियम है, इसी प्रकार से मनुष्य के मस्तिष्क मे तो क्षण प्रतिक्षण तो विचारो का उद्देलन होता रहता है, और भाव भी करवट लेते रहते हैं, कभी किसी भाव की अधिकता, किसी की न्यूनता, भावो की बदलती परिस्थितिया तो आत्म विश्लेषण कैसे हो ?सम्भवतय शांत मन से अपना विश्लेषण करे ज्योतिषाचार्यो के हिसाब से जब मनुष्य जन्म लेता है, तो ग्रहो की स्थितिया उसके आने वाले जीवन को प्रभावित करती हैं, अब प्रश्न उठता हैं, कौन से ज्योतिष शास्त्र से दूरगामी जीवन अधिक प्रभावित होता है, हिन्दी ज्योतिष जो कि चंद्रमा पर आधारित है, या अंग्रेजी ज्योतिष जो सूर्य पर आधारित है, इन दोनों पद्धतियों मैं सामन्जस्य कैसे करे,और भी भविष्यवाणी की पद्धतिया प्रचलित हैं, जैसे टैरो कार्ड इत्यादि पर इन सबका केन्द्र बिन्दु एक कैसे हो ?यह भी कहा जाता है, कि प्राणियों पर पूर्बजन्म का प्रभाव होता है, परन्तु विरले ही ऐसे हैं जिनको अपना पूर्ब जन्म ज्ञात हैं उस पर भी मालूम नहीं कि उनके व्यक्तित्व पर पूर्वजन्म का प्रभाव है कि नहीं, स्वामी योगानंद परमहंस ने कहीं लिखा था कि उनकी छुरी,कांटे से खाने की आदत थी, उन्होने तो विश्वास से लिखा था, परन्तु एक साधारण मनुष्य मैं ऐसी क्षमता कहाँ ।बदलता सामाजिक परिवेश भी तो इन्सान के व्यक्तिव पर प्रभाव डालता है, जैसे कि गौतम बुद्ध,तुलसी दास इत्यादि। महात्मा गौतम बुद्ध ने रोगी,वृद्ध मनुष्य और मृत्यु को देखा तो वो मनन करते रहे, और बौद्ध धर्मं के संस्थापक हुए, उनका व्यक्तित्व ही बदल गया, कभी कभी मन पर आघात होने पर व्यक्तित्व बदल जाता है, जैसे तुलसीदास अपनी पत्नी के प्रेम मैं अत्यधिक पड़े थे, उनकी पत्नी ने कहा हाड़,चरम से इतना प्यार है,अगर भगवान से इतना प्यार होता तो भगवान मिल जाते, तुलसीदास रसिक व्यक्तित्व को छोड़ के भक्ति मे लग गए, और एक पूर्ब रसिक,प्रेमी ने हिंदू धर्म के धार्मिक काव्यग्रंथ की रचना कर डाली, उसी मे एक पंक्ति है, " पर उपदेश कुशल बहुतेरे " कितने लोग अपना आत्मविश्लेषण कर पाते हैं, दूसरो को उपदेश देते हैं, कबीर ने तो यहाँ तक कहा है, " निंदक नियरे रखिये आँगन कुटी बनाये बिनु पानी बिन साबुन निर्मल करत सुभाय " परन्तु किस मैं इतनी सामर्थ्य है कि अपनी निंदा सुने और उस पर आधारित अपना विश्लेषण करे। जीवन अपने मैं व्यस्तमौत से वो पस्त आँचल मैं चिराग जलायेचलता जा रहा हैजलता जा रहा हैकोई दीपशिखा की तरहकोई शमा की तरहअनजाने कितने वादेअनजानी कितनी यादेजीवन अपने मैं व्यस्तमौत से वो परस्त
" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । " " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
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शनिवार, जुलाई 17, 2010

फ़ेरे उल्टे कर लो..?




शाम का समय था । सतसंग चल रहा था । महाराज जी के श्रीमुख से अमृत वचनों की बरसात से हम शिष्य साधक और अन्य प्रेमीजन अपार आनन्द अनुभव कर रहे थे । वैसे महाराज जी प्रायः सामान्य रूप से सतसंग कम ही करते हैं । पर जब कभी ऐसे प्रेमी आ जाते हैं । जो शिष्य नहीं होते । तो महाराज जी उनकी जिग्यासा और भक्ति तत्व के कुछ रहस्यों पर प्रवचन करते हैं । तब उन भाग्यशाली शिष्यों को जो उस वक्त उपस्थित होते हैं । उस ग्यान गंगा में स्नान का मौका प्राप्त हो जाता है । ऐसे ही एक प्रवचन में एक आदमी जो बाहर से आया था । महाराज जी का उपदेश । मानव जीवन का वास्तविक लक्ष्य । जीते जी मुक्ति कैसे हो । सहज भगवत प्राप्ति कैसे हो । चौरासी लाख योनियों में जीव की दुर्दशा आदि पर सहज सरल प्रवचन सुनकर आत्मविभोर हो उठा । पर उसके पास भी ढेरों शंकायें मौजूद थी । इससे पूर्व उसने " आत्म ग्यान " का असली सतसंग कभी सुना नहीं था । और भागवत सप्ताह और पुजारी बाबाओं के प्रवचन में उसने सुन रखा था कि ग्रहस्थ धर्म सबसे बङा धर्म होता है ।
हाँलाकि इस बात की पुष्टि या सिद्धता के लिये उसके पास ठोस बात नहीं थी । पर ये बात बेहद अमिटता से उसके मानसपटल पर अंकित हो चुकी थी । सत्य है । ये उसके फ़ायदे का सौदा था और बिना कुछ अतिरिक्त किये हुये ही वह पुण्यात्मा और धर्मात्मा की उपाधि को प्राप्त था । ये स्थिति संसार में बनाबटी महात्माओं द्वारा फ़ैलायी हुयी है । झूठे को झूठा मिला । हाँ जी हाँ जी होय । सांच कहे तो जग मारन धावे । झूठन को पतियावे । गुरुआ तो घर घर फ़िरे । कन्ठी माला लेय । नरके जाओ चाहे सरगे जाओ । मोय रुपैया देयु । दो रुपये से पाँच रुपये में ही ये दूधो नहाओ । पूतों फ़लो । नौकरी लगे । बच्चे राज करेंगे । सात पीङिंयाँ आनन्द करेगी । ऐसा आशीर्वाद दे देते है । कोई मन्दिर आदि का बङा पुजारी हुआ । तो एक सौ एक रुपये में असम्भव काम बनने का आशीर्वाद दे देगा । बताओ इस तरह सब कुछ आसानी से होने लगे तो विश्व में ऐसा कोई भी नहीं है । जो अनेक समस्याओं से न घिरा हो । ये बाबा भगवान शंकर की उस बात को भी झूठा कर देते हैं । निज अनुभव तोसे कहूँ खगेशा । बिनु हरि भजन न मिटे कलेशा । तो साहब । इससे पहले उस आदमी ने आत्म ग्यान का सतसंग सुना ही नहीं था । जो हमें झिंझोङकर जगाता है । हमारी आँखे खोल देता है ? बल्कि वह अन्य महात्माओं के सतसंग के अनुसार अपने को सही स्थिति में समझ रहा था । महाराज जी के सतसंग ने उसे झिंझोङ दिया । पर इसमें एक " लेकिन " लग गयी । वो लेकिन ये थी । कि घर ग्रहस्थी को निभाना मानव का सबसे बङा और पहला धर्म है । और घर ग्रहस्थी के चलते वह भजन और सतसंग के लिये वक्त नहीं निकाल पाता था । उसका सबसे मजबूत तर्क ये था कि पत्नी के साथ " सात फ़ेरे " लेकर उसे सात जन्म निभाने का वचन दिया है । ये " बेङी " उसे धार्मिक जीवन के लिये समय ही नहीं देती । महाराज जी ने हँसी में कह दिया । कि अग्नि के गिर्द " सात फ़ेरे " लगाकर तुम सात जन्म के लिये बँध गये । तो
फ़िर से अग्नि जलाकर " सात फ़ेरे " उल्टे कर लो । बन्धन खुल जायेगा । ये कितनी अग्यानता भर दी है । वास्तविकता यही है । आज भी शादी होती है । फ़ेरे होते हैं । तो बातें तो वही होती हैं जो ऊपर लिखी हैं । यानी ये पति पत्नी का बन्धन सात जन्म तक हो गया । इस जीवन में ये करूँगा । वो करूँगा । ये वचन देता हूँ । वो वचन देती हूँ । आप किसी शादी में जब ये रस्म हो रही हो । इन वचनों को नोट करके देखना । बङे लुभावने वचन होते हैं । जैसे एक वचन ये हैं । कि मैं सास श्वसुर की पूरे मन से सेवा करूँगी । कितनी बहुयें करती हैं ? इसी प्रकार आप देखना कि वर वधू जो एक दूसरे को वचन देते हैं । उनकी कुछ ही दिनों में धज्जिंयाँ उङ जाती हैं । सात जन्म तो बहुत दूर एक जन्म निभाना मुश्किल हो जाता है । सात जन्म का फ़ार्मूला वास्तव में शास्त्र और वैदिक परम्परा पर आधारित तो है । पर उस फ़ार्मूले के लिये सतयुग जैसा वातावरण होना जरूरी है । बताने की आवश्यकता नहीं । आज के समय में पति पत्नी के सम्बन्धों का क्या हाल है । ये कोई रहस्य की बात नहीं है । प्रभु भक्ति में सात फ़ेरे
बाधक है । तो वो किस काम के । प्रभु भक्ति से बङी तो कोई उपलब्धि है ही नहीं । जाके प्रिय न राम वैदेही । तजिये ताहि कोटि वैरी सम जधपि परम सनेही ।
" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । " " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

गुरुवार, जुलाई 15, 2010

गुरुपूर्णिमा उत्सव पर आप सभी सादर आमन्त्रित हैं ।


गुर्रुब्रह्मा गुर्रुविष्णु गुर्रुदेव महेश्वरा । गुरुः साक्षात पारब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ।श्री श्री 1008 श्री स्वामी शिवानन्द जी महाराज " परमहँस "
अनन्तकोटि नायक पारब्रह्म परमात्मा की अनुपम अमृत कृपा से ग्राम - उवाली । पो - उरथान । बुझिया के पुल के पास । करहल । मैंनपुरी । में सदगुरुपूर्णिमा उत्सव बङी धूमधाम से सम्पन्न होने जा रहा है । गुरुपूर्णिमा उत्सव का मुख्य उद्देश्य इस असार संसार में व्याकुल पीङित एवं अविधा से ग्रसित श्रद्धालु भक्तों को ग्यान अमृत का पान कराया जायेगा । यह जीवात्मा सनातन काल से जनम मरण की चक्की में पिसता हुआ धक्के खा रहा है व जघन्य यातनाओं से त्रस्त एवं बैचेन है । जिसे उद्धार करने एवं अमृत पिलाकर सदगुरुदेव यातनाओं से अपनी कृपा से मुक्ति करा देते हैं । अतः ऐसे सुअवसर को न भूलें एवं अपनी आत्मा का उद्धार करें । सदगुरुदेव का कहना है । कि मनुष्य यदि पूरी तरह से ग्यान भक्ति के प्रति समर्पण हो । तो आत्मा को परमात्मा को जानने में सदगुरु की कृपा से पन्द्रह मिनट का समय लगता है । इसलिये ऐसे पुनीत अवसर का लाभ उठाकर आत्मा की अमरता प्राप्त करें ।
नोट-- यह आयोजन 25-07-2010 को उवाली ( करहल ) में होगा । जिसमें दो दिन पूर्व से ही दूर दूर से पधारने वाले संत आत्म ग्यान पर सतसंग करेंगे ।
विनीत -
राजीव कुलश्रेष्ठ । आगरा । पंकज अग्रवाल । मैंनपुरी । पंकज कुलश्रेष्ठ । आगरा । अजब सिंह परमार । जगनेर ( आगरा ) । राधारमण गौतम । आगरा । फ़ौरन सिंह । आगरा । रामप्रकाश राठौर । कुसुमाखेङा ।
भूरे बाबा उर्फ़ पागलानन्द बाबा । करहल । चेतनदास । न . जंगी मैंनपुरी । विजयदास । मैंनपुरी । बालकृष्ण श्रीवास्तव । आगरा । संजय कुलश्रेष्ठ । आगरा । रामसेवक कुलश्रेष्ठ । आगरा । चरन सिंह यादव । उवाली ( मैंनपुरी । उदयवीर सिंह यादव । उवाली ( मैंनपुरी । मुकेश यादव । उवाली । मैंनपुरी ।
रामवीर सिंह यादव । बुझिया का पुल । करहल । सत्यवीर सिंह यादव । बुझिया का पुल । करहल । कायम सिंह । रमेश चन्द्र । नेत्रपाल सिंह । अशोक कुमार । सरवीर सिंह

रविवार, जुलाई 04, 2010

क्या है बायगीरी का रहस्य..?

एक सच्चाई जिससे आज की तारीख में शिक्षित लोग काफ़ी परिचित हो चुके हैं । वो ये कि " साँप " के काटने से उसके विष के प्रभाव से उतने लोग नहीं मरते । जितने कि " भय " के कारण ह्रदयगति रुक जाने से मर जाते हैं । आज discovery चैनल और अन्य माध्यम से काफ़ी लोग इस सत्य को भी जान चुके हैं । कि सभी सर्पों में विष नहीं होता । और अगर होता भी है । तो ये इतना घातक नहीं होता । कि आदमी की जान ले ले । और आज की तारीख में सर्प आदि के काटने के घातक प्रभाव से बचने के लिये समुचित इलाज भी उपलब्ध है । पर आज से पन्द्रह बीस साल पहले ऐसी स्थिति नहीं थी । उस समय सर्प के काट लेने पर जीवित बच जाना चमत्कार होता था । और सर्पदंश की स्थिति में " बायगीरों " को बुलाया जाता था । सर्पदंश से पीङित व्यक्ति को अगर संभव हो तो एक गढ्ढे
में डालकर नीम के पत्तों से लगभग दबा दिया जाता था । इसके साथ ही बायगीरों द्वारा थाली आदि बजाना और मंत्र आदि अन्य तरीकों से उसके अन्दर का विष खींचने का कार्य किया जाता था ।
यह सत्य है । कि नीम और पीपल का यदि कोई सही और व्यवहारिक उपयोग जानता हो । तो इन दोनों वृक्षों के पत्ते सर्पदंश से पीङित व्यक्ति को मौत के मुँह से बाहर खींच निकालने की क्षमता रखते हैं । पर इस तरह के ग्यान को जानने वालों का आज बेहद अभाव हो गया है । फ़िर भी आपने कई बार अखबारों में पढा होगा । और कुछ ऐसी घटनायें आपकी जानकारी में आयीं होगी । कि सर्पदंश से प्रभावित किसी व्यक्ति को मुर्दा समझकर उसके परिजनों ने या तो जलप्रवाह कर दिया । या फ़िर उसको जमीन में दफ़ना दिया । बाद में बायगीरों ने उसे निकाल लिया और जीवित कर लिया । जब मैं सिद्धि । मन्त्र और द्वैत ग्यान के क्षेत्र में शोध कर रहा था । मेरे मन में बायगीरी की जानकारी लेने की बेहद उत्सुकता थी । कि आखिर इसका वास्तविक रहस्य क्या है ?
तब मुझे कुछ हैरत अंगेज बातें पता चलीं । वास्तव में सर्प के काटने पर पीङित के इलाज में बायगीरों की ना के बराबर भूमिका होती है । नीम के पत्ते तो बेहद कारगर भूमिका निभाते ही हैं । खुद पीङित की इसमें मजेदार भूमिका होती है । साँप के काटे का सबसे बङा उदाहरण " महाराज परीक्षित " का है । जिनको साँप के काटने की वजह से आज तक भागवत सप्ताह हो रहे हैं । जब तक्षक मनुष्य के वेश परीक्षित को काटने जा रहा था । रास्ते में उसे दुर्लभ विधाओं का जानकार एक ब्राह्मण मिला । संयोगवश बातचीत में तक्षक ने पूछा कि वह कहाँ जा रहा है ? तब उस आदमी ने कहा कि आज परीक्षित को तक्षक काट लेगा । और वह मरणासन्न हो जायेंगे । तब वैसी हालत में मन्त्र विधा द्वारा उनको जीवित कर दूँगा । और इस तरह मुझे बहुत सा धन प्राप्त हो जायेगा । तक्षक यह सुनकर सन्न रह गया क्योंकि उसकी सोच के अनुसार यह असंभव बात थी । तब तक्षक ने अपना असली परिचय देते हुये एक विशाल वृक्ष पर जहर फ़ेंककर उसे जला दिया । ब्राह्मण ने तुरन्त " संजीवनी विधा " द्वारा उस वृक्ष को पहले जैसा हरा भरा कर दिया । तब तक्षक ने उससे बहुत अनुनय विनय करके उसे ऐसा न करने की सलाह दी । और
उसे अपने पास से धन दे दिया । इस घटना में और भी ढेरों रहस्य थे । जिनकी चर्चा फ़िर कभी करूँगा ।
फ़िलहाल " परीक्षित " और ग्राह द्वारा पकङे गये " गजराज " दुशासन द्वारा नग्न की जाती हुयी " द्रोपदी " साँप के द्वारा काटे गये " व्यक्ति " और अपनी मृत्यु को किसी भी तरह पहले ही जान चुका " व्यक्ति " इनमें एक भारी समानता होती है । कि उस वक्त इनकी एकाग्रता गजब की होती है । संतो के अनुसार अनजाने में मृत्यु के भय से यह " ध्यान " की पूर्ण अवस्था " आटोमेटिक " हो जाती है । और ऐसी स्थिति में यह व्यक्ति किसी महात्मा या भगवान के समान शक्तिशाली हो जाता है । और उस समय यदि ये स्थिरचित्ता हो तो कुछ भी करने में समर्थ होता है । पर क्योंकि यह मृत्यु से डरा हुआ होता है । और जीव भाव से ग्रसित होता है । इसलिये उस ताकत का उपयोग नहीं कर पाता । संत इस स्थिति को एक दोहे से बताते हैं । " आस वास दुबिधा सब खोई । सुरति एक कमल दल होई । " इसका मतलब है कि उस वक्त ये भगवान के सीधे सम्पर्क में होता है । " योगी " जिस एकाग्रता को प्राप्त करने के लिये सालों मेहनत करते हैं । मृत्यु का भय ये कार्य स्वतः ही क्षण में कर देता है । उदाहरण के तौर पर यह बात जानें । कि साँप का काटा हुआ व्यक्ति उसी एकाग्रता में किसी वस्तु पर हाथ रखकर ऐसी इच्छा करे कि मेरे शरीर से सारा विष इस वस्तु में चला जाय तो एक मिनट में ही ऐसा हो जायेगा । और वह विष के प्रभाव से मुक्त हो जायेगा । पर उस क्षण उसके अन्दर मृत्यु का भय बिलकुल नहीं होना चाहिये । क्योंकि मृत्यु का भय
आते ही " जीव " की संग्या हो जाती है । और शक्ति क्षीण हो जाती है । इसके विपरीत उसका ये भाव हो
" तू अजर अनामी वीर भय किसकी खाता । तेरे ऊपर कोई न दाता । " तो निश्चय ही उस वक्त वो भगवान से कम नहीं होता । तो बायगीर इस स्थिति में निमित्त मात्र होते हैं । त्राटक समाधि में पहुँचा सर्पदंश से पीङित व्यक्ति खुद ही अपनी स्थिति के बल पर सर्प को खींच लाता है । क्योंकि ये स्पेशल समाधि और सर्प का भय उसकी प्रविष्टि समस्त सर्पों में कर देता है । और रोगी यदि मजबूत मानसिक स्थिति का हो तो स्वयं ही अपना इलाज करके बच जाता है । लेकिन नीम पीपल के पत्ते और बायगीर भी इसमें सहायक की भूमिका निभाते हैं । थाली इत्यादि किसी चीज का बजाना स्थिति के अनुसार लाभ और हानि दोनों ही करता है । लाभ ये करता है कि रोगी का ध्यान बँटा रहता है और वो सो नहीं पाता । हानि ये करता है कि पीङित की दुर्लभ एकाग्रता भंग हो जाती है और सकारात्मक सोच और संकल्प से उसके बचने की god gift पोजीशन नष्ट हो जाती है । सर्प का तो नहीं " टिटनेस " पर एक प्रयोग मैंने खुद के ऊपर किया । एक बार बेहद जंग युक्त लोहे से मुझे चोट लग गयी । जिसमें मुझे निश्चित इंजेक्शन लगवाना चाहिये था । पर मैं तब तक कई ध्यान के प्रयोग कर चुका था । अतः " टिटनेस " पर भी
मैंने प्रयोग करने की सोची । मैंने सोचा । देखते हैं । टिटनेस का असर कब और कैसे होता है । कोई दोपहर के दो बजे मुझे चोट लगी थी । और " टिटनेस " का असर रात नौ बजे के लगभग हुआ । मुझे ऐसा प्रतीत हुआ । मानों मेरी जीभ पानी छोङ रही हो । और हाथ पैर में अजीव सी सुन्नता और खिचाव हुआ । मैंने " एकाग्रता " की और विचार किया कि मुझमें.......? और हाथ को दो तीन बार झटक दिया । सारे लक्षण तुरन्त गायब हो गये । और अंत में -- मेरे नये पाठक और विशेष तौर पर जिन्होंने एक दो लेख ही पढे होंगे । उनके लिये प्रायः मेरे लेखों को समझना कठिन होता है । इसलिये समग्र जानकारी हेतु कृपया सम्बंधित लेखो का भी अध्ययन करें ।
" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । " " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

प्रलय में पेङों की भूमिका ?



प्रलय की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है । प्रलय का कारण भी निश्चित हो चुका है । प्रलय कासमय क्योंकि अति नजदीक आ चुका है । इसलिये ये भी तय है । कि प्रलय किसी भी हालत में टलेगी नहीं । क्योंकि प्रभु के विधान का अनुसार प्रत्येक चीज का संतुलन बनाये रखना प्रकृति
की " डयूटी " में शामिल है । ये " असंतुलन " क्या है ? और कैसा है ? आपने देखा होगा । कि चारों तरफ़ अपार जनसमूह नजर आता है । आदमी है । पर रहने को मकान नहीं है । पीने को जल नहीं है । खाने को भोजन नहीं है । इस तरह आदमी अति विषम परिस्तिथियों में जीवन गुजार रहा है । कोई अत्यधिक अमीर है । किसी के पास खाने के लाले हैं । टेम्पो ( गाँव क्षेत्रों में चलने वाला तीन पहिये का भारी वाहन ) जैसी घटिया सवारी में लोग इस तरह लटककर जाते हैं ।रेलगाङी की छत पर लोग इस तरह सफ़र करते हैं कि उतने तो उसके अन्दर भी नहीं करते होंगे । इस सब को देखकर ऐसा लगता है । मानों हम प्राचीन युग में रह रहे हों । जहाँ साधनों का बेहद अभाव है । आदमी ने खुद को बङाने के अलावा हर चीज को घटा दिया है ।
इसलिये प्रलय का होना । किसी एक कारण से नहीं होगा । बल्कि प्रत्येक चीज के दुरुपयोग से पैदा हुआ भारी असंतुलन प्रलय का हाहाकार लायेगा । पर एक बात तय है । इसका मुख्य कारण प्रथ्वी के अन्दर बङता ताप और पानी की कमी मुख्य होगा ।
प्रलय 2014 to 2015 अपने दो पूर्व प्रकाशित लेखों में मैंने प्रलय के अन्य कारण । उच्चकोटि के संतो का ध्यान अवस्था में प्रलय को देखना । प्रलय में जमीन के अन्दर के पानी की भूमिका । आदि का उल्लेख किया था । प्रलय में पेङों और पक्की ऊँची इमारतों की भी भूमिका होगी । इस सम्बन्ध में विचार करते हैं । आप " यूकेलिप्टस " नाम के काफ़ी ऊँचाई वाले पेङ से भली भांति परिचित होंगे । अक्सर सरकार द्वारा यह वृक्ष सङक के दोनों और बङी विशाल मात्रा में लगाया जाता है । आप शायद इस वृक्ष की खासियत न जानते हों । यह प्रथ्वी के अन्दरूनी जल का निर्जलीकरण करने में बेहद माहिर है । यह क्योंकि चिकने पत्तों और ऊँचाई वाला वृक्ष है । इसलिये इसे बेहद ज्यादा मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है । ( मैं इस तथ्य के बारे में " गारंटी " से तो नहीं कह सकता पर मेरी जानकारी के अनुसार मोटे और चिकने पत्ते वाले पेङ जमीन से अधिक मात्रा में पानी का उपभोग करते हैं । ) ऐसे वृक्षों का अनुपात कितना कम या ज्यादा हुआ है । इस बारे में मैं कोई सटीक बात तो नहीं कह सकता । पर मैंने अपने छोटे से ही जीवन में जहाँ सङक के किनारे या अन्य स्थानों पर " नीम , पीपल , शीशम , जामुन , आम , लभेडा बरगद , गूलर , इमली ..आदि जैसे बहु उपयोगी और मानव जीवन की हर तरह से रक्षा करने वाले वृक्षों
की बहुतायत देखी थी । उसके स्थान पर अपरिचित से लगने वाले ढेरों वृक्ष नजर आने लगे । ऐसा विदेशी फ़ेशन के आकर्षण से हुआ । अथवा किसी और वजह से मैं नहीं कह सकता । एक देशी नीम का ही उदाहरण ले लें । पहले यह अति उपयोगी वृक्ष लगभग हर चबूतरे की शान बङाता था । सुबह उठते ही नीम की दातुन । फ़ोङे फ़ुंसी में नीम छाल की खोंटी । रक्त विकार में सुबह नीम की कोंपले चबाना । और इन सबसे बङकर हमारे आसपास की वायु को शुद्ध करने में जितना ये पेङ सहायक है । उतना दूसरा वृक्ष मैंने नहीं सुना । तो इस तरह के पर्यावरण की रक्षा और संतुलन करने वाले वृक्षों को हमने जीवन से निकाल दिया । और उसके स्थान पर नुकसानदायक वृक्षों को अपना लिया । मैंने केवल तथ्य की ओर संकेत किया है । विस्तार से नहीं लिखा । आप विद्वान पुरुषों से चर्चा कर देखना यह बात कितनी सही है । अब आ जाईये । बहुमंजिला विशाल आलीशान इमारतों की ओर । ये एकदम मेरा निजी ख्याल है । जो गलत भी हो सकता है । आप लोगों में से जिनको " चीका मिट्टी " की दीवालों के कच्चे घरों में रहने का अनुभव होगा । वो इस चीज को बखूबी समझ सकते हैं । ये " कच्चे घर " साधारण नहीं बल्कि एयरकंडीशन
इमारतों को " चैलेंज " करने वाले होते हैं । इन घरों में बिना किसी खर्च । बिना किसी टेंशन के । गरमी में ठंडा । और ठंड में । गरम रहने की क्षमता होती है । ये पक्की चमकती दमकती इमारतों की तरह उनके पेंट आदि से होने वाला दुष्प्रभावी केमिकल रियेक्शन भी नहीं छोङते ।
खैर ! ये बात अलग है । मैं अपना एक अनुभव आपको बता रहा हूँ । मैंने अनुभव किया । कि गरमी के दिनों में मेरे मकान के तापमान से । घर के बाहर सङक पर । उसका तीस प्रतिशत ही होता है । यही हाल सर्दियों के दिनों में होता है । घर के अन्दर तापमान में जितनी गिरावट होती है । बाहर उससे चालीस प्रतिशत अधिक होता है । प्रलय के कारण में तापमान का बढना मुख्य है । तब मेरे दिमाग में यह विचार आया कि कोलतार की गरम सङकें । और लोहा स्टील जैसी धातु और पत्थर का उपयोग करके बनायी गयी मजबूत इमारतें कितनी गरमी " आब्जर्व " करती होगीं । और यह गरमी क्या प्रथ्वी के अन्दर नहीं समाती होगी ? यदि ऐसा होता होगा तो एक दिन में प्रथ्वी कितना ताप सहन करती होगी ? और इस ताप को शीतलता पहुँचाने वाला भूगर्भ स्थित जल पहले ही लगभग गायब हो चुका है । " प्रलय में पानी की भूमिका " वाला मेरा लेख पढकर अमेरिका से उपाध्याय जी ने बताया । कि
अमेरिका में भारत आदि देशों की तरह पानी के लिये समर्सिबल पम्प का उपयोग नहीं होता । बल्कि सरकारी स्तर पर टंकी द्वारा पानी की आपूर्ति होती है । तो भी बात तो वही है । टंकी टयूबबैल आदि के द्वारा जमीन से पानी लिया और उपयोग के बाद जमीन के सोखने के बजाय पक्की नालियों आदि से होता हुआ पानी हमसे बहुत दूर चला गया । और हमारे नीचे की जमीन प्यासी रह गयी । इसीलिये तो प्रलय का शिकार वही भूमि अधिक होगी । जहाँ कच्ची जमीन कम और पक्की अधिक है । विशेष-- नये पाठक पूरी जानकारी हेतु " प्रलय " विषयक मेरे दो अन्य लेख भी पढें ।
" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । " " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।
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