सोमवार, जुलाई 26, 2010

मन पाप का भण्डार है ।

मन की तरंग मार लो बस हो गया भजन । आदत बुरी सुधार लो बस हो गया भजन ॥
आऐ हो तुम कहाँ से जाओगे तुम जहाँ । इतना सा विचार लो बस हो गया भजन ॥
कोई तुम्हें बुरा कहे तुम सुन करो क्षमा । वाणी का स्वर संभार लो बस हो गया भजन ॥
नेकी सबही के साथ में बन जाये तो करो । मत सिर बदी का भार लो बस हो गया भजन ॥
कहना है साफ साफ ये सदगुरु कबीर का । निज दोष को निहार लो बस हो गया भजन ॥
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सुर की गति मैं क्या जानूँ । एक भजन करना जानूँ ।
अर्थ भजन का भी अति गहरा । उस को भी मैं क्या जानूँ ।
प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानूँ । नैना जल भरना जानूँ ।गुण गाये प्रभु न्याय न छोड़े । फिर तुम क्यों गुण गाते हो । मैं बोला मैं प्रेम दीवाना । इतनी बातें क्या जानूँ ।
प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानूँ । नैना जल भरना जानूँ । फुलवारी के फूल फूल के । किसके गुन नित गाते हैं ।
जब पूछा क्या कुछ पाते हो । बोल उठे मैं क्या जानूँ । प्रभु प्रभु प्रभु कहना जानूँ । नैना जल भरना जानूँ
हर सांस में हर बोल में । हरि नाम की झंकार है । हर नर मुझे भगवान है । हर द्वार मंदिर द्वार है ।
ये तन रतन जैसा नहीं । मन पाप का भण्डार है ।
पंछी बसेरे सा लगे । मुझको सकल संसार है । हर डाल में हर पात में । जिस नाम की झंकार है ।
उस नाथ के द्वारे तू जा । होगा वहीं निस्तार है । अपने पराये बन्धुओं का । झूठ का व्यवहार है ।
मन के यहां बिखरे हुये । प्रभु ने पिरोया तार है ।
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" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । "" सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
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