रविवार, जुलाई 04, 2010

क्या है बायगीरी का रहस्य..?

एक सच्चाई जिससे आज की तारीख में शिक्षित लोग काफ़ी परिचित हो चुके हैं । वो ये कि " साँप " के काटने से उसके विष के प्रभाव से उतने लोग नहीं मरते । जितने कि " भय " के कारण ह्रदयगति रुक जाने से मर जाते हैं । आज discovery चैनल और अन्य माध्यम से काफ़ी लोग इस सत्य को भी जान चुके हैं । कि सभी सर्पों में विष नहीं होता । और अगर होता भी है । तो ये इतना घातक नहीं होता । कि आदमी की जान ले ले । और आज की तारीख में सर्प आदि के काटने के घातक प्रभाव से बचने के लिये समुचित इलाज भी उपलब्ध है । पर आज से पन्द्रह बीस साल पहले ऐसी स्थिति नहीं थी । उस समय सर्प के काट लेने पर जीवित बच जाना चमत्कार होता था । और सर्पदंश की स्थिति में " बायगीरों " को बुलाया जाता था । सर्पदंश से पीङित व्यक्ति को अगर संभव हो तो एक गढ्ढे
में डालकर नीम के पत्तों से लगभग दबा दिया जाता था । इसके साथ ही बायगीरों द्वारा थाली आदि बजाना और मंत्र आदि अन्य तरीकों से उसके अन्दर का विष खींचने का कार्य किया जाता था ।
यह सत्य है । कि नीम और पीपल का यदि कोई सही और व्यवहारिक उपयोग जानता हो । तो इन दोनों वृक्षों के पत्ते सर्पदंश से पीङित व्यक्ति को मौत के मुँह से बाहर खींच निकालने की क्षमता रखते हैं । पर इस तरह के ग्यान को जानने वालों का आज बेहद अभाव हो गया है । फ़िर भी आपने कई बार अखबारों में पढा होगा । और कुछ ऐसी घटनायें आपकी जानकारी में आयीं होगी । कि सर्पदंश से प्रभावित किसी व्यक्ति को मुर्दा समझकर उसके परिजनों ने या तो जलप्रवाह कर दिया । या फ़िर उसको जमीन में दफ़ना दिया । बाद में बायगीरों ने उसे निकाल लिया और जीवित कर लिया । जब मैं सिद्धि । मन्त्र और द्वैत ग्यान के क्षेत्र में शोध कर रहा था । मेरे मन में बायगीरी की जानकारी लेने की बेहद उत्सुकता थी । कि आखिर इसका वास्तविक रहस्य क्या है ?
तब मुझे कुछ हैरत अंगेज बातें पता चलीं । वास्तव में सर्प के काटने पर पीङित के इलाज में बायगीरों की ना के बराबर भूमिका होती है । नीम के पत्ते तो बेहद कारगर भूमिका निभाते ही हैं । खुद पीङित की इसमें मजेदार भूमिका होती है । साँप के काटे का सबसे बङा उदाहरण " महाराज परीक्षित " का है । जिनको साँप के काटने की वजह से आज तक भागवत सप्ताह हो रहे हैं । जब तक्षक मनुष्य के वेश परीक्षित को काटने जा रहा था । रास्ते में उसे दुर्लभ विधाओं का जानकार एक ब्राह्मण मिला । संयोगवश बातचीत में तक्षक ने पूछा कि वह कहाँ जा रहा है ? तब उस आदमी ने कहा कि आज परीक्षित को तक्षक काट लेगा । और वह मरणासन्न हो जायेंगे । तब वैसी हालत में मन्त्र विधा द्वारा उनको जीवित कर दूँगा । और इस तरह मुझे बहुत सा धन प्राप्त हो जायेगा । तक्षक यह सुनकर सन्न रह गया क्योंकि उसकी सोच के अनुसार यह असंभव बात थी । तब तक्षक ने अपना असली परिचय देते हुये एक विशाल वृक्ष पर जहर फ़ेंककर उसे जला दिया । ब्राह्मण ने तुरन्त " संजीवनी विधा " द्वारा उस वृक्ष को पहले जैसा हरा भरा कर दिया । तब तक्षक ने उससे बहुत अनुनय विनय करके उसे ऐसा न करने की सलाह दी । और
उसे अपने पास से धन दे दिया । इस घटना में और भी ढेरों रहस्य थे । जिनकी चर्चा फ़िर कभी करूँगा ।
फ़िलहाल " परीक्षित " और ग्राह द्वारा पकङे गये " गजराज " दुशासन द्वारा नग्न की जाती हुयी " द्रोपदी " साँप के द्वारा काटे गये " व्यक्ति " और अपनी मृत्यु को किसी भी तरह पहले ही जान चुका " व्यक्ति " इनमें एक भारी समानता होती है । कि उस वक्त इनकी एकाग्रता गजब की होती है । संतो के अनुसार अनजाने में मृत्यु के भय से यह " ध्यान " की पूर्ण अवस्था " आटोमेटिक " हो जाती है । और ऐसी स्थिति में यह व्यक्ति किसी महात्मा या भगवान के समान शक्तिशाली हो जाता है । और उस समय यदि ये स्थिरचित्ता हो तो कुछ भी करने में समर्थ होता है । पर क्योंकि यह मृत्यु से डरा हुआ होता है । और जीव भाव से ग्रसित होता है । इसलिये उस ताकत का उपयोग नहीं कर पाता । संत इस स्थिति को एक दोहे से बताते हैं । " आस वास दुबिधा सब खोई । सुरति एक कमल दल होई । " इसका मतलब है कि उस वक्त ये भगवान के सीधे सम्पर्क में होता है । " योगी " जिस एकाग्रता को प्राप्त करने के लिये सालों मेहनत करते हैं । मृत्यु का भय ये कार्य स्वतः ही क्षण में कर देता है । उदाहरण के तौर पर यह बात जानें । कि साँप का काटा हुआ व्यक्ति उसी एकाग्रता में किसी वस्तु पर हाथ रखकर ऐसी इच्छा करे कि मेरे शरीर से सारा विष इस वस्तु में चला जाय तो एक मिनट में ही ऐसा हो जायेगा । और वह विष के प्रभाव से मुक्त हो जायेगा । पर उस क्षण उसके अन्दर मृत्यु का भय बिलकुल नहीं होना चाहिये । क्योंकि मृत्यु का भय
आते ही " जीव " की संग्या हो जाती है । और शक्ति क्षीण हो जाती है । इसके विपरीत उसका ये भाव हो
" तू अजर अनामी वीर भय किसकी खाता । तेरे ऊपर कोई न दाता । " तो निश्चय ही उस वक्त वो भगवान से कम नहीं होता । तो बायगीर इस स्थिति में निमित्त मात्र होते हैं । त्राटक समाधि में पहुँचा सर्पदंश से पीङित व्यक्ति खुद ही अपनी स्थिति के बल पर सर्प को खींच लाता है । क्योंकि ये स्पेशल समाधि और सर्प का भय उसकी प्रविष्टि समस्त सर्पों में कर देता है । और रोगी यदि मजबूत मानसिक स्थिति का हो तो स्वयं ही अपना इलाज करके बच जाता है । लेकिन नीम पीपल के पत्ते और बायगीर भी इसमें सहायक की भूमिका निभाते हैं । थाली इत्यादि किसी चीज का बजाना स्थिति के अनुसार लाभ और हानि दोनों ही करता है । लाभ ये करता है कि रोगी का ध्यान बँटा रहता है और वो सो नहीं पाता । हानि ये करता है कि पीङित की दुर्लभ एकाग्रता भंग हो जाती है और सकारात्मक सोच और संकल्प से उसके बचने की god gift पोजीशन नष्ट हो जाती है । सर्प का तो नहीं " टिटनेस " पर एक प्रयोग मैंने खुद के ऊपर किया । एक बार बेहद जंग युक्त लोहे से मुझे चोट लग गयी । जिसमें मुझे निश्चित इंजेक्शन लगवाना चाहिये था । पर मैं तब तक कई ध्यान के प्रयोग कर चुका था । अतः " टिटनेस " पर भी
मैंने प्रयोग करने की सोची । मैंने सोचा । देखते हैं । टिटनेस का असर कब और कैसे होता है । कोई दोपहर के दो बजे मुझे चोट लगी थी । और " टिटनेस " का असर रात नौ बजे के लगभग हुआ । मुझे ऐसा प्रतीत हुआ । मानों मेरी जीभ पानी छोङ रही हो । और हाथ पैर में अजीव सी सुन्नता और खिचाव हुआ । मैंने " एकाग्रता " की और विचार किया कि मुझमें.......? और हाथ को दो तीन बार झटक दिया । सारे लक्षण तुरन्त गायब हो गये । और अंत में -- मेरे नये पाठक और विशेष तौर पर जिन्होंने एक दो लेख ही पढे होंगे । उनके लिये प्रायः मेरे लेखों को समझना कठिन होता है । इसलिये समग्र जानकारी हेतु कृपया सम्बंधित लेखो का भी अध्ययन करें ।
" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । " " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

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