सोमवार, नवंबर 21, 2011

99% मनोवैज्ञानिक समस्याएं मानव के sex के दमन से पैदा होती हैं ।

ऐसा लगता है कि दुनिया दिन पर दिन अधिक से अधिक पागल होती जा रही है । कोई नहीं जानता कि क्या हो रहा है ? और हर चीज उलटी सीधी । और गड़बड़ हो गई है । यह बात अखबार कहते हैं । क्या यह सच है ? और यदि ऐसा है । तो क्या जीवन में कोई आत्यंतिक संतुलन है । जो हर चीज को स्थिर रखे हुए है ?
दुनिया वैसी ही है । यह हमेशा ऐसी ही रही है । उलटी । पागल । विक्षिप्त । सच तो यह है कि सिर्फ 1 नई बात दुनिया में हुई है । और वह यह होश कि हम पागल हैं कि हम उलटे हैं कि हममें कुछ मौलिक गलती है । और यह महान आशीर्वाद है - यह होश । निश्चित ही यह शुरुआत है । 1 लंबी प्रक्रिया का सिर्फ क ख ग । सिर्फ बीज । लेकिन बहुत अर्थपूर्ण । दुनिया अपने विक्षिप्त ढंगों के प्रति कभी भी सचेत नहीं थी । जितनी कि आज है । यह हमेशा ऐसी ही रही है । 3000 सालों में मानव ने 5000 युद्ध किए । क्या तुम कह सकते हो कि मानवता स्वस्थ रही है ? कोई मानवता के इतिहास में यह याद भी नहीं कर सकता कि कोई ऐसा समय रहा हो । जब लोग 1 - दूसरे को धर्म के नाम पर । या परमात्मा के नाम पर । या शांति । मानवता । वैश्विक भाईचारे के नाम पर नष्ट न करते रहे हों । बड़े बड़े शब्दों के पीछे कुरूप असलियत छिपी है । ईसाई मुसलमानों की हत्या करते रहे । मुसलमान ईसाइयों की हत्या करते रहे । मुसलमान हिंदुओं की हत्या करते रहे । हिंदु मुसलमानों की हत्या करते रहे । राजनैतिक विचारधाराएं । धार्मिक विचारधाराएं । दार्शनिक विचारधाराएं । हत्याओं के लिए मुखौटे रहे हैं । हत्या को उचित ठहराने का ढंग । और ये सारे religion लोगों से वादा कर रहे थे कि यदि तुम धर्मयुद्ध में मारे जाते हो । तो तुम्हारा स्वर्ग निश्चित है । युद्ध में हत्या करना पाप नहीं है । युद्ध में मारा जाना बहुत बड़ा पुण्य है । यह निरी मूर्खता है । लेकिन 10 हजार सालों के संस्कार मानवता के खून में । हड्डियों में । मज्जा में गहरे चले गए हैं ।
हर धर्म । हर देश । हर वर्ग । दावा कर रहा था - हम परमात्मा के चुने हुए लोग हैं । हम श्रेष्ठ हैं । सभी हम से नीचे हैं । यह पागलपन है । और इसके कारण सभी ने दुख झेला । हर बच्चा स्वस्थ चित्त पैदा होता है । और धीरे धीरे हम उसे सभ्य बनाते हैं । हम इसे सभ्य बनाने की प्रक्रिया कहते हैं । हम उसे महान संस्कृति । महान चर्च । वह महान राज्य । जिसमें वह रहता है । उसका हिस्सा बनने के लिए तैयार करते हैं । हमारी सारी राजनीति मूर्खतापूर्ण है । और तब वह मूर्ख बन जाता है । हमारी सारी शिक्षा भद्दी है । हमारी राजनीति और कुछ नहीं बस महत्वाकांक्षा है । नंगी महत्वाकांक्षा । ताकत की महत्वाकांक्षा । और सिर्फ शूद्रतम लोग ताकत में रुचि रखते हैं । सिर्फ वे लोग जो गहरी आत्महीनता की ग्रथि से पीड़ित हैं । वे ही राजनेता बनते हैं । वे यह सिद्ध करना चाहते हैं कि वे हीन नहीं हैं । वे दूसरों के सामने सिद्ध करना चाहते हैं । वे स्वयं के सामने सिद्ध करना चाहते हैं कि वे हीन नहीं हैं । वे श्रेष्ठ हैं ।
राजनेता विक्षिप्त हैं । लेकिन हम अपने बच्चों को सिखाते हैं कि वे राजनेता बनें । हम अपने बच्चों को वही संस्कृति सिखाते हैं । जिसने हमें दुख दिया । वही मूल्य । जो हमारी छाती पर बोझ बने हुए हैं । जो सिर्फ सूक्ष्म जंजीरें सिद्ध हुए हैं । कैदखाने । लेकिन हम अपने बच्चों को संस्कारित किए चले जाते हैं । उसी शिक्षा ने जिसने हमारे प्रसाद । हमारी निर्दोषता को नष्ट कर दिया । हम वही शिक्षा हमारे बच्चों को सिर में ठूंसते चले जाते हैं । और हम अपने बच्चों से झूठ बोलते चले जाते हैं । जैसे कि हमारे माता पिता हमारे से झूठ बोलते रहे ।
और यह सदियों से चला आ रहा है । मानवता कैसे स्वस्थ । ठीक । विश्रांत हो सकती है ? इसका पागल होना तय है । जरा देखो कि तुम कैसे अपने बच्चों से झूठ बोले चले जा रहे हो ।
पहली बार । मानवता के संपूर्ण इतिहास में । कुछ लोग । इस बात को लेकर सचेत हुए हैं कि हम अभी तक गलत ढंग से बने रहे हैं । कुछ मूल बात हमारी बुनियाद में ही चूक रही है । कुछ है । जो हमें स्वस्थ मानव नहीं बनने देती । हमारे संस्कारों में विक्षिप्तता के बीज हैं । लेकिन आज 1 बात अच्छी हो रही है । कम से कम थोड़े से युवा लोग इस बात को लेकर सचेत हो रहे हैं कि हमारा सारा अतीत गलत रहा है । और इसे संपूर्ण बदलाव की जरूरत है - हमें अतीत से सातत्य तोड़ने की जरूरत है । हमें ताजा शुरुआत करने की जरूरत है । सारे अतीत का प्रयोग पूरी तरह से असफल हो गया !
1 बार हम सत्य जैसा है । वैसा स्वीकार लेते हैं । तो मानव स्वस्थ हो सकता है । मानव जन्मजात स्वस्थ है । हम उसे पागल बना देते हैं । 1 बार हम स्वीकार लें कि यहां कोई country और कोई वर्ग नहीं है । मानव शांत और मौन हो जाएगा । ये सारी हिंसा और आक्रामकता विदा हो जाएगी । यदि हम मानव के शरीर । उसकी कामुकता । उसकी स्वाभाविकता को स्वीकार लें । तो religion के नाम पर सब तरह के मूर्खताएं सिखाई जाती हैं । वे वाष्पीभूत हो जाएगी । 99% मनोवैज्ञानिक समस्याएं मानव के sex के दमन से पैदा होती हैं ।
हमें मानव को अतीत से मुक्त करना है । यहां मेरा सारा कार्य यही है । तुम्हें अतीत से मुक्त करने में सहायक होऊं । समाज ने जो कुछ भी तुम्हारे साथ किया है । उसे अनकिया करना है । तुम्हारी चेतना साफ होनी चाहिए । रिक्त । ताकि तुम साफ आईने की तरह हो सको । जो वास्तविकता को प्रतिबिंबित करता है । वास्तविकता को प्रतिबिंबित करने में योग्य होना । god को जान लेना है । वास्तविकता का दूसरा नाम god  है । वह जो है । और मानव सचमुच स्वस्थ तब होता है । जब वह सत्य को जान लेता है ।
सत्य मुक्ति लाता है । सत्य विवेक लाता है । सत्य ज्ञान लाता है । सत्य निर्दोषता लाता है । सत्य आनंद लाता है । सत्य उत्सव लाता है । हमें इस सारी पृथ्वी को महानतम उत्सव में बदलना है । और यह संभव है । क्योंकि मानव वह सब कुछ ले आया है । जो इस पृथ्वी को स्वर्ग में बदल सकता है । ओशो । कम । कम । येट अगेन कम ।

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