सोमवार, नवंबर 21, 2011

उसने कहा - मैं मौत हूँ

मैंने सुना है कि 1 गांव के बाहर 1 फकीर रहता था । 1 रात उसने देखा कि 1 काली छाया गांव में प्रवेश कर रही है । उसने पूछा कि - तुम कौन हो ? उसने कहा - मैं मौत हूँ । और शहर में महामारी फैलने वाली है । इसीलिये मैं जा रही हूं । 1000 आदमी मरने है । बहुत काम है । मैं रूक न सकूँगी । महीने भर में शहर में 10000 आदमी मर गये । फकीर ने सोचा । हद हो गई झूठ की । मौत खुद ही झूठ बोल रही है । हम तो सोचते थे कि आदमी ही बेईमान है । ये तो देखो मौत भी बेईमान हो गई । कहा 1000 और मार दिये 10000 । मौत जब 1 महीने बाद आई । तो फकीर ने पूछा कि तुम तो कहती थी 1000 आदमी ही मारने है । 10000 आदमी मर चुके । और अभी मरने ही जा रहे है ।
उस मौत ने कहा । मैंने तो 1000 ही मारे हैं । 9000 तो घबराकर मर गये हैं । मैं तो आज जा रही हूं । और पीछे से जो लोग मरेंगे । उनसे मेरा कोई संबंध नहीं होगा । और देखना । अभी भी शायद इतने ही मेरे जाने के बाद मर जाए । वह खुद मर रहे है । यह आत्‍महत्या है । जो आदमी भरोसा करके मर जाता है । यदि मर गया । वह भी आत्‍महत्या हो गयी । ऐसी आत्‍महत्‍याओं पर मंत्र काम कर सकते है । ताबीज काम कर सकते है । राख काम कर सकती है । उसमें संत वंत को कोई लेना देना नहीं है । अब हमें पता चल गया है कि उसकी मानसिक तरकीबें है । तो ऐसे अंधे है ।
सुना है मैंने । 1 घर में 2 वर्ष से 1 आदमी लक़वे से परेशान है । उठ नहीं सकता है । न हिल ही सकता है । सवाल ही नहीं है उठने का । सूख गया है । 1 रात । आधी रात । घर में आग लग गयी है । सारे लोग घर के बाहर पहुंच गये । पर प्रमुख तो घर के भीतर ही रह गया । पर उन्‍होंने क्‍या देखा कि प्रमुख तो भागे चले आ रहे हैं । यह तो बिलकुल चमत्‍कार हो गया । आग की बात तो भूल ही गये । देखा ये तो गजब हो गया । लकवा जिसको 2 साल से लगा हुआ था । वह भागा चला आ रहा है । अरे आप चल कैसे सकते है । और वह वहीं वापस गिर गया । मैं चल ही नहीं सकता ।
अभी लक़वे के मरीजों पर सैकड़ों प्रयोग किये गये । लक़वे के मरीज को हिप्नोटाइज करके । बेहोश करके । चलवाया जा सकता है । और वह चलता है । तो उसका शरीर तो कोई गड़बड़ नहीं करता । बेहोशी में चलता है । और होश में नहीं चल पाता । चलता है । चाहे बेहोशी में ही क्‍यों न चलता हो । 1 बात का तो सबूत है कि उसके अंगों में कोई खराबी नहीं है । क्‍योंकि बेहोशी में अंग कैसे काम कर रहे है । अगर खराब हो । लेकिन होश में आकर वह गिर जाता है । तो इसका मतलब साफ है ।
बहुत से बहरे है । जो झूठे बहरे है । इसका मतलब यह नहीं है कि उनको पता नहीं है । क्‍योंकि अचेतन मन ने उनको बहरा बना दिया है । बेहोशी में सुनते है । होश में बहरे हो जाते है । ये सब बीमारियाँ ठीक हो सकती है । लेकिन इसमें चमत्कार कुछ भी नहीं है । चमत्‍कार नहीं है । विज्ञान जो भीतर काम कर रहा है । साइकोलाजी । वह भी पूरी तरह स्‍पष्‍ट नहीं है । आज नहीं कल । पूरी तरह स्‍पष्‍ट हो जायेगा ।
आप 1 साधु के पास गये । उसने आपको देखकर कह दिया । आपका फलां नाम है ? आप फलां गांव से आ रहे है । बस आप चमत्‍कृत हो गये । हद हो गयी । कैसे पता चला । मेरा गांव । मेरा नाम । मेरा घर ? क्‍योंकि टेलीपैथी अभी अविकसित विज्ञान है ।  बुनियादी सुत्र प्रगट हो चुके है । अभी दूसरे के मन के विचार को पढ़ने कि साइंस धीरे धीरे विकसित हो रही है । और साफ हुई जा रही है । उसका सबूत है । कुछ लेना देना नहीं है । कोई भी पढ़ सकेगा । कल जब साइंस हो जायेगी । कोई भी पढ़ सकेगा । अभी भी काम हुआ है । और दूसरे के विचार को पढ़ने में बड़ी आसानी हो गयी है । छोटी सी तरकीब आपको बता दूँ । आप भी पढ़ सकते है । एक दो चार दिन प्रयोग करें । तो आपको पता चल जायेगा । और आप पढ सकते है । लेकिन जब आप खेल देखेंगे । तो आप समझेंगे कि भारी चमत्‍कार हो रहा है ।
1 छोटे बच्‍चे को लेकर बैठ जायें । रात अँधेरा कर लें । कमरे में । उसको दूर कोने में बैठा लें । आप यहां बैठ जायें । और उस बच्‍चे से कह दें कि हमारी तरफ ध्‍यान रख । और सुनने की कोशिश कर । हम कुछ न कुछ कहने की कोशिश कर रहे है । और अपने मन में एक ही शब्‍द ले लें । और उसको जोर से दोहरायें । अंदर ही दोहरायें । गुलाब । गुलाब को जोर से दोहरायें । गुलाब । गुलाब । गुलाब दोहरायें । आवाज में नहीं । मन में जोर से । आप देखेंगे कि 3 दिन में बच्‍चे ने पकड़ना शुरू कर दिया । वह वहां से कहेगा । क्‍या आप गुलाब कह रहे है । तब आपको पता चलेगा कि बात क्‍या हो गयी ।
जब आप भीतर जोर से गुलाब दोहराते है । तो दूसरे तक उसकी विचार तरंगें पहुंचनी शुरू हो जाती है । बस वह जरा सा रिसेप्‍टिव होने की कला सीखने की बात है । बच्‍चे रिसेप्‍टिव है । फिर इससे उलट भी किया जा सकता है । बच्‍चे को कहे कि वह 1 शब्‍द मन में दोहरायें । और आप उसे तरफ ध्‍यान रखकर । बैठकर पकड़ने की कोशिश करेंगें । बच्‍चा 3 दिन में पकड़ा है । तो आप 6 दिन में पकड़ सकते है । कि वह क्‍या दोहरा रहा है । और जब 1 शब्‍द पकड़ा जा सकता है । तो फिर कुछ भी पकड़ा जा सकता है ।
हर आदमी के अंदर विचार कि तरंगें मौजूद है । वह पकड़ी जा रही है । लेकिन इसका विज्ञान अभी बहुत साफ न होने की वजह से कुछ मदारी इसका उपयोग कर रह है । जिनको यह तरकीब पता है । वह कुछ उपयोग कर रहे है । फिर वह आपको दिक्‍कत में डाल देते है । यह सारी की सारी बातों में कोई चमत्‍कार नहीं है । न चमत्‍कार कभी पृथ्‍वी पर हुआ नहीं । न कभी होगा ।1000 साल गुलाम रहे थे । और यहां ऐसे चमत्‍कारी पड़े है कि जिसका कोई हिसाब नहीं । गुलामी की जंजीरें नहीं कटतीं । ऐसा लगता है कि अंग्रेजो के सामने चमत्‍कार नहीं चलता । चमत्‍कार होने के लिए हिंदुस्‍तानी होना जरूरी है । क्‍योंकि अगर खोपड़ी में थोड़ी भी विचार चलता हो । तो चमत्‍कार के कटने का डर रहता है । तो जहां विचार है । बिलकुल न चला पाओगे चमत्‍कार को । सबसे बड़ा चमत्‍कार यह है कि लोग चमत्‍कार कर रहे है । सबसे बड़ा चमत्‍कार यह है कि हम खुद भी होते हुए चमत्‍कार देख रहे हैं । और घरों में बैठकर चर्चा कर रहे हैं । कि चमत्‍कार हो रहा है । और कोई इन चमत्‍कारियों की जाकर गर्दन नहीं पकड़ लेता कि जो खो गयी है घड़ी । उसको बाहर निकलवा ले कि क्‍या मामला है । क्‍या कर रहे हो ? वह नहीं होता है ।
हम हाथ पैर जोड़कर खड़े हैं । उसका कारण है । हमारे भीतर कमजोरियाँ हैं । जब राख की पुड़िया निकलती है । तो हम सोचते है कि भई शायद और भी कुछ निकल आयें पीछे । राख की पुड़िया से कुछ होने वाला नहीं है न । आगे कुछ और संभावना बनती है । आशा बंधती है । और कोई बीमार है । किसी को नौकरी नहीं मिली है । किसी की पत्‍नी मर गई है । किसी का किसी से प्रेम है । किसी का मुकदमा चल रहा है । सबकी तकलीफें है । तो लगता है । जो आदमी ऐसा कर रहा है । अपनी तकलीफ भी कुछ कम कर रहा है । दौड़ो इसके पीछे ।
बीमारी । गरीबी । परेशानी । उलझनें कारण हैं कि हम चमत्‍कारियों के पीछे भाग रहे है । कोई धार्मिक जिज्ञासा कारण है । धार्मिक जिज्ञासा से इसका कोई संबंध नहीं है । धार्मिक जिज्ञासा से इसका क्‍या वास्‍ता । धार्मिक जिज्ञासा का क्‍या हल होगा । इन सारी बातों से । लेकिन लोग करते चले जाएंगे । क्‍योंकि हम गहरे अज्ञान में है । गहरे विश्‍वास में है । लोग कहते चले जाएंगे । और शोषण होता चला जायेगा । पुराने चित ने चमत्‍कारी पैदा किया था । लेकिन जिन जिन कौमों ने चमत्‍कारी पैदा किये । उन उन कौमों ने विज्ञान पैदा नहीं किया ।
ध्‍यान रहे । चमत्‍कारी चित वहीं पैदा हो सकता है । जहां एंटी सांइटिफिक माइंड हो । जहां विज्ञान विरोधी चित हो । जहां विज्ञान आयेगा । वहां चमत्‍कारी मरेगा । क्‍योंकि विज्ञान कहेगा । चमत्‍कार को कि हम काज़ और इफेक्‍ट में मानते है । हम मानते है । कार्य और कारण में । विज्ञान किसी चमत्‍कार को नहीं मानता है । उसने हजारों चमत्‍कार किये है । जिनमें से एक भी कोई संत कर देता । तो हम हजारों लाखों साल तक उसकी पूजा करते । अब यह पंखा चल रहा है । यह माइक आवाज कर रहा है । यह चमत्‍कार नहीं होगा । क्‍योंकि यह विज्ञान ने किया है । और विज्ञान किसी चीज को छिपाता नहीं है । सारे कार्य कारण प्रगट कर देता है । आदमी का ह्रदय बदला जा रहा है । दूसरे का ह्रदय उसके काम कर रहा है । आदमी के सारे शरीर के पार्ट बदले जा रहे है ।
आज नहीं कल । हम आदमी की स्‍मृति भी बदल सकेंगे । उसकी भी संभावना बढ़ती जा रही है । कोई जरूरी नहीं है कि एक आइंस्‍टीन माइंड वह मर ही जाये । आइंस्‍टीन मरे । मरे । उसकी स्‍मृति को बचाकर हम एक नये बच्‍चे में ट्रांस्‍पलांट कर सकते है । इतने बड़े चमत्‍कार घटित हो रहे है । लेकिन कोई नासमझ न कहेगा कि ये चमत्‍कार है । कहेगा । ऐसा चमत्‍कार क्‍या है । और कोई आदमी की फोटो में से राख झाड़ देता है । हम हाथ जोड़कर खडे हो जाते है । चमत्‍कार हो रहा है । बड़ा आश्‍चर्य है । अवैज्ञानिक विज्ञान विरोधी चित है । विज्ञान ने इतने चमत्‍कार घटित किये है कि हमें पता ही नहीं चलता । क्‍योंकि विज्ञान चमत्‍कार का दावा नहीं करता । विज्ञान खुला सत्‍य है । ओपन सीक्रेट है ।
और यह जो बेईमानों की दुनिया है यहां । इसलिए अगर किसी आदमी को कोई तरकीब पता चल जाती है । तो उसको खोलकर नहीं रख सकता । क्‍योंकि खोले तो चमत्‍कार गया । इसलिए ऐसे मुल्‍क का ज्ञान रोज बढ़ जाता है । अगर मुझे कोई चीज पता चल जाये । और चमत्‍कार करना हो । तो पहली जरूरत हो । यह है कि उसके पीछे जो राज है । उसको मैं प्रगट न करूं । आयुर्वेद ने बहुत विकास किया । लेकिन आयुर्वेद का जो वैद्य था । वह वह चमत्‍कार कर रहा था । इसलिए आयुर्वेद पिछड़ गया । नहीं तो आयुर्वेद की आज की स्‍थिति एलोपैथी से कहीं बहुत आगे होती । क्‍योंकि ऐलापैथी की खोज बहुत नयी है । आयुर्वेद की खोज बहुत पुरानी है । इसलिए एक वैद्य को जो पता है । वह अपने बेटे को भी न बातयेगा । नहीं तो चमत्‍कार गड़बड़ हो जायेगा । मजा लेना चाहता है
मजा लेना चाहता है । टीका । छाप लगाकर । और साफ़ा वगैरह बांधकर बैठा रहेगा । और मर जायेगा । वह जो जान लिया था । वह छिपा जायेगा । क्‍योंकि वह अगर पूरी कड़ी बता दे । तो फिर चमत्‍कार नहीं होगा । लेकिन तब साइंस बंद करनी पड़ी । हिंदुस्‍तान में कोई साइंस नही बनती । जिस आदमी को जो पता है । वह उसको छिपाकर रखता है । वह कभी उसका पता किसी को चलने नहीं देगा । क्‍योंकि पता चला कि चमत्‍कार खत्‍म हो गया । इस वजह से हमारे मुल्‍क में ज्ञान की बहुत दफे किरणें प्रगट हुई । लेकिन ज्ञान का सूरज कभी न बन पाया । क्‍योंकि एक एक किरण मर गयी । और उसे कभी हम बपौती न बना पाये कि उसे हम आगे दे सकें । उसको देने में डर है । क्‍योंकि दिया तो कम से कम उसे तो पता ही चल जायेगा कि अरे ।
एक महिला मेरे पास प्रोफसर थी । वह संस्‍कृत की प्रोफेसर थी । वह इसी तरह एक मदारी के चक्‍कर में आ गयी । जिनकी फोटो से राख गिरती है । और ताबीज निकलते है । उसने मुझसे आकर आशीर्वाद मांगा कि मैं अब जा रही हूं । सब छोड़कर । मुझे तो भगवान मिल गये है । अब कहां यहां पड़ी रहूंगी । आप मुझे आशीर्वाद दें । मैंने कहा । यह आशीर्वाद मांगना ऐसा है । जैसे कोई आये कि अब मैं जा रहा हूं । कुएं में गिरने को । और उसको मैं आशीर्वाद दूं । मैं न दूंगा । तुम कुएं में गिरो मजे से । लेकिन इसमें ध्‍यान रखना कि मैंने आशीर्वाद नही दिया । क्‍योंकि मैं इस पाप में क्‍यों भागीदार होऊं । मरो तुम । फंसू मैं । यह मैं न करूंगा । तुम जाओ । मजे से गिरो । लेकिन जिस दिन तुम्‍हें पता चल जाये कि कुएं में गिर गई हो । और अगर बच सकी हो । तो मुझे खबर जरूर कर देना ।
5 - 7 साल बीत गए । मुझे याद भी नहीं रहा । उस महिला का क्‍या हुआ । क्‍या नहीं हुआ । पिछले वक्‍त बंबई में बोल रहा था सभा में । तो वह उठकर आयी । और उसने मुझे आकर कहा । आपने जो कहा । वह घटना हो गयी है । तो मैं कब आकर पूरी बात बजा जाऊं । लेकिन कृपा करके किसी और को मत बताना । मैंने कहा । क्‍यों ? उसने कहा । वह भी मैं कल बताऊंगी । वह कल आयी । उसने कहा । अब बड़ी मुश्‍किल हो गयी । जिन ताबीजों को आकाश से निकालते देखकर मैं प्रभावित हुई थी । अब मैं उन्‍हीं संत की प्राइवेट सेकेट्री हो गई हूं । अब मैं उन्‍हीं के ताबीज बाजार से खरीद कर लाती हूं । बिस्‍तर के नीचे छिपा आती हूं । प्रगट होने का सब राज पता हो गया है । अब मैं भी प्रगट कर सकती हूं । लेकिन बड़ी मुशिकल में पड़ गयी हूं । उसी चमत्‍कार से तो हम आये भी । अब वह चमत्‍कार सब खत्‍म हो गया है । अब मैं क्‍या करूं ? अब मैं छोड़कर आ जाऊं । तो उसमें तो और भी मुश्‍किल है ।
कालेज में नौकरी करती थी । मुझे 700 रूपये मिलते थे । अब मुझे कोई दो - 2500 रूपये को फायदा । महीने का होगा । और इतने रूपये आते है मेरे पास कि जितने उसमें से उड़ा दूं । वह अलग है । उसका कोई हिसाब नहीं है । इसलिए मैं आ तो नहीं सकती । इसलिए मैं आपको कहती हूं । कृपा करके किसी और को मत कह देना । अब मेरी काम अच्‍छा चल रहा है । नौकरी है । लेकिन अब तो चमत्‍कार वह अध्‍यात्‍म का कोई लेना देना नहीं है । तो इसलिए पता न चल जाय । वह सारा त्‍याग चल रहा है । ज्ञान पता है । प्रगट होने को उत्‍सुक होता है । बेइमानी सदा अप्रकट रहना चाहती है । ज्ञान सदा खुलता है । बेईमानी सदा छिपाती है । नहीं । कोई मिरेकल जैसी चीज दुनिया में नहीं होती । न हो सकती है । और अगर होती होगी । तो पीछे जरूर कारण होगा । यह हो सकता है । और अगर होती होगी । तो पीछे जरूर करण होगा । यह हो सकता है । आज कारण न खोजा जा सके । कल खोज लिया जायेगा । परसों खोज लिया जायेगा । 

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