सोमवार, नवंबर 21, 2011

सत्य को जानना है तो अपनी बुद्धि के कुओं से बाहर आ जाओ

साधारण आदमी जब उसके जीवन में दुख आता है । तब शिकायत करता है । सुख आता है । तब धन्यवाद नहीं देता । जब दुख आता है । तब वह कहता है कि - कहीं कुछ भूल हो रही है । god नाराज है । भाग्य विपरीत है । और जब सुख आता है । तब वह कहता है कि - यह मेरी विजय है ।
मुल्ला नसरुद्दीन 1 प्रदर्शनी में गया । अपने विद्यार्थियों को साथ लेकर । उस प्रदर्शनी में 1 जुए का खेल चल रहा था । लोग तीर चला रहे थे  धनुष से । और 1 निशाने पर चोट मार रहे थे । निशाने पर चोट लग जाये । तो जितना दांव पर लगाते थे । उससे 10 गुना उन्हें मिल जाता था । निशाने पर चोट न लगे । तो जो उन्होंने दांव पर लगाया । वह खो जाता । nasruddin अपने student के साथ पहुँचा । उसने अपनी टोपी सम्हाली । धनुष बाण उठाया ।  दांव लगाया । और पहला तीर छोड़ा । तीर पहुंचा ही नहीं निशान तक । लगने की बात दूर । वह कोई 10-15 फीट पहले गिर गया । लोग हंसने लगे । नसरुद्दीन ने अपने विद्यार्थियों से कहा - इन नासमझों की हंसी की फिक्र मत करो । अब तुम्हें समझाता हूं कि - तीर क्यों गिरा ।  लोग भी चौंककर खड़े हो गये । वह जो जुआ खिलाने वाला था । वह भी चौंककर रह गया । बात ही भूल गया । नसरुद्दीन ने कहा - देखो  यह उस, सिपाही का तीर है । जिसको आत्मा पर भरोसा नहीं । जिसको आत्मविश्वास नहीं । वह पहुंचता ही नहीं है -लक्ष्य तक ।  पहले ही गिर जाता है । अब तुम दूसरा तीर देखो ।
 सभी लोग उत्सुक हो गये । उसने दूसरी तीर प्रत्यंचा पर रखा । और तेजी से चलाया । वह तीर निशान से बहुत आगे गया । इस बार लोग हंसे नहीं । नसरुद्दीन ने कहा - देखो यह उस आदमी का तीर है । जो जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास से भरा हुआ है ।
और तब उसने तीसरा तीर उठाया । और संयोग की बात कि वह जाकर निशान से लग गया । nasruddin ने जाकर अपना दांव उठाया । और कहा - 10 गुने रुपये दो ।
भीड़ में थोड़ी फुसुसाहट हुई । और लोगों ने पूछा - और यह किसका तीर है ? नसरुद्दीन ने कहा - यह मेरा तीर है । पहला तीर उस सिपाही का था । जिसको आत्मविश्वास नहीं है । दूसरा  उस सिपाही का था । जिसको ज्यादा आत्मविश्वास है । और तीसरा-जो लग गया । वह मेरा तीर है ।
यही साधारण मनोदशा है । जब तीर लग जाये । तो तुम्हारा ।  चूक जाये । तो कोई और जिम्मेवार है । और जब तुम किसी को जिम्मेवार न खोज सको । तो god जिम्मेवार है । जब तक तुम दृश्य जगत में किसी को जिम्मेदार खोज लेते हो । तब तक अपने दुख उस पर डाल देते हो । अगर दृश्य जगत में तुम्हें कोई जिम्मेवार न दिखाई पड़े । तब भी तुम जिम्मेवारी अपने कंधे पर तो नहीं ले सकते । तब god तुम्हारे काम आता है । वह तुम्हारे बोझ को अपने कंधे पर ढोता है ।
तुमने परमात्मा को अपने दुखों से ढांक दिया है । अगर वह दिखाई नहीं पड़ता है । तो हो सकता है । सबने मिलकर इतने दुख उस पर ढांक दिये हैं कि - वह ढंक गया है । और उसे खोजना मुश्किल है ।
शब्दों या शास्त्रों की सीमा में सत्य नहीं है । असल में जहां सीमा है । वहीं सत्य नहीं है । सत्य तो असीम है । उसे जानने को बुद्धि और विचारों की परिधि को तोड़ना आवश्यक है । असीम होकर ही असीम को जाना जाता है । विचार के घेरे से मुक्त होते ही चेतना असीम हो जाती है । वैसे ही जैसे मिट्टी के घड़े को फोड़ दें । तो उसके भीतर का आकाश असीम आकाश से 1 हो जाता है ।
सूर्य आकाश के मध्य में आ गया था । 1 सुंदर हंस 1 सागर से दूसरे सागर की ओर उड़ा जा रहा था । लंबी यात्रा और धूप की थकान से वह भूमि पर उतरकर 1 कुएं की पाट पर विश्राम करने लगा । वह बैठ भी नहीं पाया था कि कुएं के भीतर से 1 मेंढक की आवाज आयी - मित्र who are you और कहां से आए हो ?  वह हंस बोला - मैं एक अत्यंत दरिद्र हंस हूँ । और सागर पर मेरा निवास है ।  मेंढक का सागर से परिचित व्यक्ति से पहला ही मिलन था । वह पूछने लगा - सागर कितना बड़ा है ?  हंस ने कहा - असीम । इस पर मेंढक ने पानी में 1 छलांग लगाई । और पूछा - क्या इतना बड़ा ?
वह हंस हंसने लगा । और बोला - प्यारे मेंढक । नहीं । सागर इससे अनंत गुना बड़ा है । इस पर मेंढक ने 1 और बड़ी छलांग लगाई । और पूछा - क्या इतना बड़ा ? उत्तर फिर भी नकारात्मक पाकर मेंढक ने कुएं की पूर्ण परिधि में कूदकर चक्कर लगाया और पूछा - अब तो ठीक है  । सागर इससे बड़ा और क्या होगा ? उसकी आंखों में विश्वास की झलक थी । और इस बार उत्तर के नकारात्मक होने की उसे कोई आशा न थी । लेकिन उस हंस ने पुन: कहा - नहीं मित्र ! नहीं तुम्हारे कुएं से सागर को मापने का कोई उपाय नहीं है । इस पर मेंढक तिरस्कार से हंसने लगा । और बोला - महानुभाव ! असत्य की भी सीमा होती है ?  मेरे संसार से बड़ा सागर कभी भी नहीं हो सकता ।
मैं सत्य के खोजियों से क्या कहता हूं । कहता हूं - सत्य के सागर को जानना है । तो अपनी बुद्धि के कुओं से बाहर आ जाओ । बुद्धि से सत्य को पाने का कोई उपाय नहीं । वह अमाप है । उसे तो वही पाता है । जो स्वयं के सब बांध तोड़ देता है । उनके कारण ही बाधा है । उनके मिटते ही सत्य जाना ही नहीं जाता । वरन उससे एक्य हो जाता है । उससे 1 हो जाना ही उसे जानना है । 

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