सोमवार, नवंबर 21, 2011

india के लोचपोच आदमियों में यह भी एक कारण है

सब तीर्थ बहुत ख्‍याल से बनाये गए है । अब जैसे कि मिश्र में पिरामिड है । वे मिश्र में पुरानी खो गई सभ्‍यता के तीर्थ है । और 1 बड़ी मजे की बात है कि इन पिरामिड के अंदर । क्‍योंकि पिरामिड जब बने तब । वैज्ञानिको का खयाल है । उस काल में इलेक्ट्रिसिटी हो नहीं सकती ।
आदमी के पास बिजली नहीं हो सकती । बिजली का आविष्‍कार उस वक्‍त कहां । कोई 10 हजार वर्ष पुराना पिरामिड है । कई 20 हजार वर्ष पुराना पिरामिड है । तब बिजली का तो कोई उपाय नहीं था । और इनके अंदर इतना अँधेरा कि उस अंधेरे में जाने का कोई उपाय नहीं है । अनुमान यह लगाया जा सकता है कि लोग मशाल ले जाते हों । या दीये ले जाते हो । लेकिन धुएँ का 1 भी निशान नहीं है । इतने पिरामिड में कहीं । इसलिए बड़ी मुश्‍किल है । 1 छोटा सा दीया घर में जलाएगें । तो पता चल जाता है । अगर लोग मशालें भीतर ले गए हों । तो इन पत्‍थरों पर कहीं न कहीं न कहीं धुएँ के निशान तो होने चाहिए ।
रास्‍ते इतने लंबे । इतने मोड़ वाले है । और गहन अंधकार है । तो 2 ही उपाय हैं । या तो हम मानें कि बिजली रही होगी । लेकिन बिजली की किसी तरह की फ़िटिंग का कहीं कोई निशान नहीं है । बिजली पहुंचाने का कुछ तो इंतजाम होना चाहिए । दूसरा आदमी सोच सकता है । तेल । घी के दीयों या मशालों का । पर उन सबसे किसी न किसी तरह के निशान पड़ते है । जो कहीं भी नहीं है । फिर उनके भीतर आदमी कैसे जाता रहा है । कोई कहेगा । नहीं जाता होगा । तो इतने रास्‍ते बनाने की कोई जरूरत नहीं है । पर सीढ़ियाँ है । रास्‍ते है । द्वार है । दरवाजे है । अंदर चलने फिरने का बड़ा इंतजाम है । 1-1 पिरामिड में बहुत से लोग प्रवेश कर सकते है । बैठने के स्‍थान है अंदर । वह सब किस लिये होंगे । यह पहेली बनी रह गई है । और साफ नहीं हो पाएगी कभी भी । क्‍योंकि पिरामिड की समझ नहीं है साफ । कि ये किस लिये बनाए गए है ? लोग समझते है । किसी सम्राट का फितूर होगा । कुछ और होगा ।
लेकिन ये तीर्थ है । और इन पिरामिड में प्रवेश का सूत्र ही यही है कि जब कोई अंतर अग्‍नि पर ठीक से प्रयोग करता है । तो उसका शरीर आभा फेंकने लगता है । और तब वह अंधेरे में प्रवेश कर सकता है । तो न तो यहां बिजली उपयोग की गई है ।  न यहां कभी दीया उपयोग किया गया है । न मशाल का उपयोग किया गया है । सिर्फ शरीर की दीप्‍ति उपयोग कि गई थी । लेकिन वह शरीर की दीप्ति अग्‍नि के विशेष प्रयोग से ही होती है । इनमें प्रवेश ही वही करेगा । जो इस अंधकार में मजे से चल सके । वह उसकी कसौटी भी है । परीक्षा भी है । और उसको प्रवेश का हक भी है । वह हकदार भी है ।
जब पहली बार 1905 या 10 में 1-1 पिरामिड खोजा जो रहा था । तो जो वैज्ञानिक उस पर काम कर रहा था । उसका सहयोगी अचानक खो गया । बहुत तलाश की गई । कुछ पता न चला । यहीं डर हुआ कि वह किसी गलियारे में अंदर है । बहुत प्रकाश और सर्च लाईट ले जाकर खोजा । वह कोई 24 घंटे खोया रहा  । 24 घंटे बाद । कोई रात 2 बजे वह भागा हुआ आया । करीब पागल हालत में । उसने कहा । मैं टटोलकर अंदर जा रहा था कि कहीं मुझे दरवाजा मालूम पड़ा । मैं अंदर गया । और फिर ऐसा लगा कि पीछे कोई चीज बंद हो गई । मैंने लौटकर देखा । तो दरवाजा तो बंद हो चुका था । जब मैं आया । तब खुला था । पर दरवाजा भी नहीं था कोई । सिर्फ खुला था । फिर इसके सिवाय कोई उपाय नहीं था कि मैं आगे चला जाऊँ । और मैं ऐसी अदभुत चीजें देखकर लौटा हूं । जिसका कोई हिसाब लगाना मुश्‍किल है ।
वह इतनी देर गुम रहा । वह पक्‍का है । वह इतना परेशान लौटा है । पक्‍का है । लेकिन जो बातें वह कह रहा है । वह भरोसे की नहीं है कि ऐसी चीजें होंगी । बहुत खोजबीन की गई । उस दरवाजे की । लेकिन दरवाजा दुबारा नहीं मिल सका । न तो वह यह बता पाया कि कहां से प्रवेश किया । न यह बता पाया कि वह कहां से निकला । तो समझा गया कि या तो वह बेहोश हो गया । या उसने कहीं सपना देखा । या वह कहीं सो गया । और कुछ समझने का चारा नहीं था ।
लेकिन जो चीजें उसने कही थी । वह सब नोट कर ली गयीं । उस साइकिक अवस्‍था में । स्वपनवत अवस्‍था में । जो जो उसने वहां देखीं । फिर खुदाई में कुछ पुस्‍तकें मिलीं । जिनमें उन चीजों का वर्णन भी मिला । तब बहुत मुसीबत हो गई । उस वर्णन से लगा कि वह चीजें किसी कमरे में वहां बंद है । लेकिन उस कमरे का द्वार किसी विशेष मनोदशा में खुलता है । अब इस बात की संभावना है कि वह एक सांयोगिक घटना थी कि इसकी मनोदशा वैसी रही हो । क्‍योंकि इसे तो कुछ पता नहीं था । लेकिन द्वार खुला अवश्‍य । तो जिन गुप्‍त तीर्थों की मैं बात कर रहा हूं । उनके द्वार है । उन तक पहुंचने की व्‍यवस्‍थाएं है । लेकिन उस सबके आंतरिक सूत्र है । इन तीर्थों में ऐसा सारा इंतजाम है कि जिनका उपयोग करके चेतना गतिमान हो सके । जैसे कि पिरामिड के सारे कमरे । उनका आयतन 1 हिसाब में है । कभी आपने ख्‍याल किया । कहीं छप्‍पर बहुत नीचा हो । लेकिन आपके सिर को नहीं छू रहा हो । और यही छप्‍पर थोड़ा सरक कर नीचे आने लगे । हमको दबाएगा नहीं । हम से अभी 2 फिट ऊँचा है । लेकिन हमें आभास होगा कि हमारे भीतर कोई चीज दबने लगी ।
जब नीचे छप्‍पर में आप प्रवेश करते है । तो आपके भीतर कोई चीज सिकुड़ती है । और आप जब बड़े छप्‍पर के नीचे प्रवेश करते है । तो आपके भीतर कोई चीज फैलती है । कमरे का आयतन इस ढंग से निर्मित किया जा सकता है । ठीक उतना किया जा सकता है । जितने में आपको ध्यान आसान हो जाए । सरलतम हो जाए । ध्‍यान आपको । उतना आयतन निर्मित किया जा सकता है । उतना आयतन खोज लिया गया था । उस आयतन का उपयोग किया जा सकता है । आपके भी सिकुडने ओर फैलने के लिए । उस कमरे के भीतर रंग । उस कमरे के भीतर गंध । उस कमरे के भीतर ध्‍वनि । इस सबका इंतजाम किया जा सकता है । जो आपके ध्‍यान के लिए सहयोगी हो जाए ।
सब तीर्थों का अपना संगीत था । सच तो यह है कि सब संगीत । तीर्थों में पैदा हुए । और सब संगीत साधकों ने पैदा किए । सब संगीत । किसी दिन मंदिर में पैदा हुए । सब नृत्‍य । किसी दिन मंदिर में पैदा हुए । सब सुगंध । पहली दफा मंदिर में उपयोग की गई । 1 दफा जब यह बात पता चल गई कि संगीत के माध्‍यम से कोई व्‍यक्‍ति परमात्‍मा की तरफ जा सकता है । तो संगीत के माध्यम से परमात्‍मा के विपरीत भी जा सकता है । यह भी ख्‍याल में आ गया । और तब बाद में दूसरे संगीत खोजें गए । किसी गंध से । जबकि परमात्‍मा की तरफ जाया जा सकता है । तो विपरीत किसी गंध से । कामुकता की तरफ जाया जा सकता है । गंधें भी खोज ली गई । किसी विशेष आयतन में ध्‍यानस्‍थ हो सकता है । तो किसी विशेष आयतन में ध्‍यान से रोका जा सकता है । वह भी खोज लिया गया ।
जैसे अभी चीन में ब्रेन वाश के लिए जहां कैदियों को खड़ा करते है । उस कोठरी का एक विशेष आयतन है । उस विशेष आयतन में ही खड़ा करते है । और उन्‍होंने अनुभव किया कि उस आयतन में कभी बेशी करने से ब्रेन वाश करने में मुसीबत पड़ती है । 1 निश्चित आयतन । हजारों प्रयोग करके तय हो गया कि इतनी ऊंची । इतनी चौड़ी । इतनी आयतन की कोठरी में कैदियों को खड़ा कर दो । तो कितनी देर में डिटीरीओरेशन हो जाएगा । कितनी देर में खो देगा । वह अपने दिमाग को । फिर उसमें 1 विशेष ध्‍वनि भी पैदा करो । तो और जल्‍दी खो देगा । खास जगह उसके मस्‍तिष्‍क पर हेमरिंग करो । तो और जल्दी खो देगा ।
वे कुछ नहीं करते । 1 मटका ऊपर रख देते है । और 1-1 बूंद पानी उसकी खोपड़ी पर टपकता रहता है । उसकी अपनी लय है । रिदिम है । बस । टप टप वह पानी सर पर टपकता रहता है । 24 घंटे वह आदमी खड़ा है । बैठ भी नहीं सकता । हिल भी नहीं सकता । आयतन इतना है । कोठरी का लेट भी नहीं सकता । वह खड़ा है । मस्‍तिष्‍क में पानी टप टप गिरता जा रहा है । आधा घंटा पूरे होते होते 30 मिनट पूरे होते होते सिवाय टप टप की आवाज के कुछ नहीं बचता । आवाज इतनी जोर से मालूम होने लगेगी । जैसे पहाड़ गिर रहा है । अकेली आवाज रह जाएगी । उस आयतन में । और 24 घंटे में वह आपके दिमाग को अस्‍त व्‍यस्‍त कर देगी । 24 घंटे के बाद जब आपको बाहर निकालेंगे । तो आप वहीं आदमी नहीं होगें । उन्‍होंने आपको सब तरह से तोड़ दिया है ।
ये सारे के सारे प्रयोग । पहली दफा तीर्थों में खोजें गए । मंदिरों में खोजें गए । जहां से आदमी को सहायता पहुँचाई जा सके । मंदिर के घंटे है । मंदिर की ध्वनियाँ है । धूप है । गंध है । फूल है । सब नियोजित था । और 1 सातत्य रखने की कोशिश की गई । उसकी कंटीन्युटी न टूटे । बीच में कहीं कोई व्‍यवधान न पड़े । अहर्निश धारा । उसकी जारी रखी जाती रही । जैसे सुबह इतने वक्‍त आरती होगी । इतनी देर चलेगी । इस मंत्र के साथ होगी । दोपहर आरती होगी । इतनी देर चलेगी । इस मंत्र के साथ होगी । सांझ आरती होगी । इतनी देर चलेगी । यह क्रम ध्‍वनियों का उस कोठरी में गूंजता रहेगा । पहला क्रम टूटे । उसके पहले दूसरा रीप्लेस हो जाए  । यह हजारों साल तक चलेगा ।
जैसा मैंने कहा । पानी को अगर लाख दफा पानी बनाया जाए । भाप बनाकर । तो जैसे उसकी क्‍वालिटी बदलती है । अल्‍केमी के हिसाब से उसी प्रकार 1 ध्‍वनि को लाखों दफा पैदा किया जाए । एक कमरे में तो उस कमरे की पूरी तरंग । पूरी गुणवत्‍ता बदल जाती है । उसकी पूरी क्वालिटी बदल जाती है । उसके बीच व्‍यक्‍ति को खड़ा कर देना । उसके पास खड़ा कर देना । उसके रूपांतरित होने के लिए । आसानी जुटा देगा । और चूंकि हमारा सारा का सारा व्‍यक्‍तित्व को बदलने लगता है । और आदमी इतना बाहर है कि पहले बाहर से ही फर्क उसको आसान पड़ते है । भीतर के फर्क तो पहले बहुत कठिन पड़ते है । दूसरा उपाय था । पदार्थ के द्वारा सारी ऐसी व्‍यवस्‍था दे देना कि आपके शरीर को जो जो सहयोगी हो । वह हो जाए ।
जितने दूर का नाता होगा । उतना ही बच्‍चा सुंदर होगा । स्‍वस्‍थ होगा । बलशाली होगा । मेधावी होगा । इसलिए फिक्र की जाती रही कि भाई बहन का विवाह न हो । दूर संबंध खोजें जाते है । जिलों गोत्र का भी नाता न हो । 3-4-5 पीढ़ियों का भी नाता न हो । क्‍योंकि जितने दूर का नाता हो । उतना ही बच्‍चे के भीतर मां और पिता के जो वीर्याणु और अंडे का मिलन होगा । उसमें दूरी होगी । तो उस दूरी के कारण ही व्‍यक्‍तित्‍व में गरिमा होती है ।
इसलिए मैं इस पक्ष में हूं कि भारतीय को भारतीय से विवाह नहीं करना चाहिए । जापानी से करे । चीनी से करे । तिब्‍बती से करे । इरानी से करे । जर्मन से करे । भारतीय से न करे । क्‍योंकि जब दूर ही करनी है । जितनी दूर हो । उतना अच्‍छा ।
और अब तो वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है बात । पशु पक्षियों के लिए हम प्रयोग भी कर रहे है । लेकिन आदमी हमेशा पिछड़ा हुआ होता है । क्‍योंकि उसकी जकड़ रूढ़िगत होती है । अगर हमको अच्‍छी गाय की नस्‍ल पैदा करनी है । तो हम बाहर से वीर्य अणु बुलाते है । अंग्रेज सांड का वीर्य अणु बुलाते है । भारतीय गाय के लिए । और कभी नहीं सोचते कि गऊ माता के साथ क्‍या कर रहे हो तुम यह । गऊ माता और अंग्रेज पिता । शर्म नहीं आती । लाज संकोच नहीं । मगर उतने ही स्‍वस्‍थ बच्‍चे पैदा होंगे । उतनी ही अच्‍छी नस्‍ल होगी ।
इसलिए पशुओं की नसलें सुधरती जा रही है । खासकर पश्‍चिम में तो पशुओं की नसलें बहुत सधुर गई है । कल्‍पनातीत । 60-60 लीटर दूध देने वाली गायें । कभी दूनिया में नहीं थी । और उसका कुल कारण यह है कि दूर दूर के वीर्याणु को मिलाते जाते है । हर बार । आने वाले बच्‍चे और ज्‍यादा स्‍वास्‍थ और भी स्वारथ होते जाते है । कृतों की नसलों में इतनी क्रांति हो गई है कि जैसे कुत्ते कभी नहीं थे । दुनियां में । रूस में फलों में क्रांति हो गई हे । कयोंकि फलों के साथ भी यही प्रयोग कर रहे है । आज रूस के पास जैसे फल है । दुनिया में किसी के पास नहीं है । उनके फल बड़े है । ज्‍यादा रस भरे है । ज्‍यादा पौष्‍टिक है । और सारी तरकीब 1 है । जितनी ज्‍यादा दूरी हो ।
भारत की दीन हीनता में यह भी एक कारण है । india के लोचपोच आदमियों में यह भी एक कारण है । क्‍योंकि जैन सिर्फ जैनों के साथ ही विवाह करेंगे । अब जैनों की कुल संख्‍या 30 लाख है । महावीर को मरे 2500 साल हो गए । अगर महावीर ने 30 जोड़ों को संन्‍यास दिया होता । तो 30 लाख की संख्‍या हो जाती । 30 जोड़े काफ़ी थे । तो अब जैनों का सारा संबंध जैनों से ही होगा । और जैनों में भी । श्‍वेतांबर का श्‍वेतांबर से । और दिगंबर का दिगंबर से । और सब श्‍वेतांबर से नहीं । तेरा पंथी का तेरा पंथी से । और स्‍थानक वासी का स्‍थानक वासी से । और छोटे छोटे टुकड़े है । संख्‍या हजारों में रह जाती है । और उन्हीं के भीतर गोलगोल घूमते रहते है लोग । छोटे छोटे तालाब है । और उन्‍हीं के भीतर लोग बच्‍चे पैदा करते रहते है । इससे कचरा पैदा होता है । सारी दुनिया में सबसे ज्‍यादा कचरा इस भारत में है । फिर तुम रोते हो कि यह अब कचरे का क्‍यों पैदा हो रहा है । तुम खुद इसके जिम्‍मेदार हो ।
ब्राह्मण सिर्फ ब्राह्मणों से शादी करेंगे । और वह भी सभी ब्राह्मणों से नहीं । कान्‍यकुब्‍ज ब्राह्मण कान्‍यकुब्‍ज से करेंगे । और देशस्‍थ देशस्‍थ से । और कोंकणस्‍थ कोंकणस्‍थ से । और स्‍वस्‍थ ब्राह्मण तो मिलते ही कहां हैं । मुझे तो अभी तक नहीं मिला । कोई भी । और असल में । स्‍वस्‍थ हो । उसी को ब्राह्मण कहना चाहिए । स्‍वयं में स्‍थित हो । वही ब्राह्मण है ।
और यह जो भारत की दुर्गति है । उसमें एक बुनियादी कारण यह भी है कि यहां सब जातियां अपने अपने घेरे में जी रही हैं । यहीं बच्‍चे पैदा करना । कचड़  बचड़ । वही होती रहेगी । थोड़ा बहुत बचाव करेंगे । मगर कितना बचाव करोगे । जिससे भी शादी करोगे । 2-4-5 पीढ़ी पहले उससे तुम्‍हारे भाई बहन का संबंध रहा होगा । 2-4-5 पीढ़ी ज्‍यादा से ज्‍यादा कर सकते हो । इससे ज्‍यादा नहीं बचा सकते । जितना छोटा समाज होगा । उतना बचाव करना । कठिन हो जायेगा । जितना छोटा समाज होगा,। उतनी संतति में पतन होगा । थोड़ा मुक्‍त होओ । ब्राह्मण को विवाह करने दो जैन से । जैन को विवाह करने दो हरिजन से । हरिजन को विवाह करने दो मुसलमान से । मुसलमान को विवाह करने दो ईसाई से । तोड़ो ये सारी सीमाएं । निकलो एक बार इस कूप से । देखो फिर उँची संतति को ।

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...