सोमवार, नवंबर 21, 2011

क्योंकि जहां मैं खड़ा हूं वहां अतीत और भविष्य 1 हो गए हैं

महावीर से गोशालक के नाराज हो जाने के कुछ कारणों में 1 कारण यह पौधा भी था । महावीर को छोड़कर चले जाने में । ज्योतिष का । जिस ज्योतिष की मैं बात कर रहा हूं । उसका संबंध अनिवार्य से  । एसेंशियल से । फाउंडेशनल से है । आपकी उत्सुकता ज्यादा से ज्यादा सेमी एसेंशियल तक जाती है । पता लगाना चाहते हैं कि कितने दिन जीऊंगा ? मर तो नहीं जाऊंगा ? जीकर क्या करूंगा । जी ही लूंगा । तो क्या करूंगा । इस तक आपकी उत्सुकता ही नहीं पहुंचती । मरूंगा । तो मरते में क्या करूंगा ।  इस तक आपकी उत्सुकता नहीं पहुंचती । घटनाओं तक पहुंचती है । आत्माओं तक नहीं पहुंचती । जब मैं जी रहा हूं ।  तो यह तो घटना है सिर्फ । जीकर मैं क्या कर रहा हूं । जीकर मैं क्या हूं । वह मेरी आत्मा है । जब मैं मरूंगा । वह तो घटना होगी । लेकिन मरते क्षण में मैं क्या होऊंगा । क्या करूंगा । वह मेरी आत्मा होगी । हम सब मरेंगे । मरने के मामले में सबकी घटना एक सी घटेगी । लेकिन मरने के संबंध में । मरने के क्षण में । हमारी स्थिति सबकी भिन्न होगी । कोई मुस्कुराते हुए मर सकता है ।
मुल्ला नसरुद्दीन से कोई पूछ रहा है । जब वह मरने के करीब है । उससे कोई पूछ रहा है कि आपका क्या खयाल है मुल्ला । लोग जब पैदा होते हैं । तो कहां से आते हैं ? जब मरते हैं । तो कहां जाते हैं ? मुल्ला ने कहा । जहां तक अनुभव की बात है । मैंने लोगों को पैदा होते वक्त भी रोते ही पैदा होते देखा । और मरते वक्त भी रोते ही जाते देखा है । अच्छी जगह से न आते हैं । न अच्छी जगह जाते हैं । इनको देखकर जो अंदाज लगता है ।  न अच्छी जगह से आते हैं । न अच्छी जगह जाते हैं । आते हैं । तब भी रोते हुए मालूम पड़ते हैं । जाते हैं । तब भी रोते हुए मालूम पड़ते हैं ।
लेकिन नसरुद्दीन जैसा आदमी हंसता हुआ मर सकता है । मौत तो घटना है । लेकिन हंसते हुए मरना आत्मा है । तो आप कभी ज्योतिषी से पूछे कि मैं हंसते हुए मरूंगा कि रोते हुए ? नहीं पूछा होगा ।
पूरी पृथ्वी पर एक आदमी ने नहीं पूछा । ज्योतिषी से जाकर कि मैं मरते वक्त हंसते हुए मरूंगा कि रोते हुए मरूंगा ? यह पूछने जैसी बात है । लेकिन यह एसेंशियल एस्ट्रोलाजी से जुड़ी हुई बात है ।
आप पूछते हैं । कब मरूंगा ? जैसे मरना । अपने आप में मूल्यवान है बहुत । कब तक जीऊंगा ? जैसे बस जी लेना काफी है । किसलिए जीऊंगा । क्यों जीऊंगा  ? जीकर क्या करूंगा ?  जीकर क्या हो जाऊंगा ? कोई पूछने नहीं जाता । इसलिए महल गिर गया । क्योंकि वह महल गिर जाएगा । जिसके आधार नॉन एसेंशियल पर रखे हों । गैर जरूरी चीजों पर । जिसकी हमने दीवारें खड़ी कर दी हों । वह कैसे टिकेगा । आधार शिलाएं चाहिए । मैं जिस ज्योतिष की बात कर रहा हूं । और आप जिसे ज्योतिष समझते रहे हैं ।  उससे गहरी है । उससे भिन्न है । उससे आयाम और है । मैं इस बात की चर्चा कर रहा हूं कि कुछ आपके जीवन में अनिवार्य है । और वह अनिवार्य आपके जीवन में और जगत के जीवन में संयुक्त और लयबद्ध है ।  अलग अलग नहीं है । उसमें पूरा जगत भागीदार है । उसमें आप अकेले नहीं हैं ।
जब बुद्ध को ज्ञान हुआ । तो बुद्ध ने दोनों हाथ जोड़कर पृथ्वी पर सिर टेक दिया । कथा है कि आकाश से देवता बुद्ध को नमस्कार करने आए थे कि वह परम ज्ञान को उपलब्ध हुए हैं । बुद्ध को पृथ्वी पर हाथ टेके सिर रखे देखकर वे चकित हुए । उन्होंने पूछा कि तुम और किसको नमस्कार कर रहे हो ? क्योंकि हम तो तुम्हें नमस्कार करने स्वर्ग से आते हैं । और हम तो नहीं जानते कि बुद्ध भी किसी को नमस्कार करे । ऐसा कोई है । बुद्धत्व तो आखिरी बात है ।
तो बुद्ध ने आंखें खोलीं । और बुद्ध ने कहा - जो भी घटित हुआ है । उसमें मैं अकेला नहीं हूं । सारा विश्व है । तो इस सबको धन्यवाद देने के लिए सिर टेक दिया है । यह एसेंशियल एस्ट्रोलाजी से बंधी हुई बात है । सारा जगत ।
इसलिए बुद्ध अपने भिक्षुओं से कहते थे कि - जब भी तुम्हें कुछ भी भीतरी आनंद मिले । तत्क्षण अनुगृहीत हो जाना । समस्त जगत के । क्योंकि तुम अकेले नहीं हो । अगर सूरज न निकलता । अगर चांद न निकलता । अगर एक रत्ती भर भी घटना और घटी होती । तो तुम्हें यह नहीं होने वाला था । जो हुआ है । माना कि तुम्हें हुआ है । लेकिन सबका हाथ है । सारा जगत । उसमें इकट्ठा है । एक कास्मिक । जागतिक अंतर संबंध का नाम ज्योतिष है ।
तो बुद्ध ऐसा नहीं कहेंगे कि - मुझे हुआ है । बुद्ध इतना ही कहते हैं कि जगत को मेरे मध्य हुआ है । यह जो घटना घटी है । एनलाइटेनमेंट की । यह जो प्रकाश का आविर्भाव हुआ है । यह जगत ने मेरे बहाने जाना है । मैं सिर्फ 1 बहाना हूं । 1 क्रास रोड । जहां सारे जगत के रास्ते आकर मिल गए हैं ।
कभी आपने खयाल किया है कि चौराहा बड़ा भारी होता है । लेकिन चौराहा अपने में कुछ नहीं होता । वे जो 4 रास्ते आकर मिले होते हैं । उन चारों को हटा लें । तो चौराहा विदा हो जाता है । हम सब क्रिसक्रास प्वाइंट्स हैं । जहां जगत की अनंत शक्तियां आकर एक बिंदु को काटती हैं । वहां व्यक्ति निर्मित हो जाता है । इंडिविजुअल बन जाता है ।
तो वह जो सारभूत ज्योतिष है । उसका अर्थ केवल इतना ही है कि हम अलग नहीं हैं । एक  उस 1 बृह्म के साथ हैं । उस 1 बृह्मांड के साथ हैं । और प्रत्येक घटना भागीदार है ।
तो बुद्ध ने कहा है कि - मुझसे पहले जो बुद्ध हुए । उनको नमस्कार करता हूं । और मेरे बाद जो बुद्ध होंगे । उनको नमस्कार करता हूं । किसी ने पूछा कि आप उनको नमस्कार करें । जो आपके पहले हुए । समझ में आता है । क्योंकि हो सकता है । उनसे कोई जाना अनजाना ऋण हो । क्योंकि जो आपके पहले जान चुके हैं । उनके ज्ञान ने आपको साथ दिया हो ।
लेकिन जो अभी हुए ही नहीं । उनसे आपको क्या लेना देना है ? उनसे आपको कौन सी सहायता मिली है ? तो बुद्ध ने कहा - जो हुए हैं । उनसे भी मुझे सहायता मिली है । जो अभी नहीं हुए हैं । उनसे भी मुझे सहायता मिली है । क्योंकि जहां मैं खड़ा हूं । वहां अतीत और भविष्य 1 हो गए हैं । वहां जो जा चुका है । वह उससे मिल रहा है । जो अभी आने को है । वहां जो जा चुका । उससे मिलन हो रहा है । उसका जो अभी आने को है । वहां सूर्योदय और सूर्यास्त 1 ही बिंदु पर खड़े हैं । तो मैं उन्हें भी नमस्कार करता हूं । जो होंगे । उनका भी मुझ पर ऋण है । क्योंकि अगर वे भविष्य में न हों । तो मैं आज न हो सकूंगा । इसको समझना थोड़ा कठिन पड़ेगा । यह एसेंशियल एस्ट्रोलाजी की बात है । कल जो हुआ है । अगर उसमें से कुछ भी खिसक जाए । तो मैं न हो सकूंगा ।  क्योंकि मैं 1 शृंखला में बंधा हूं । यह समझ में आता है । अगर मेरे पिता न हों  जगत में । तो मैं न हो सकूंगा । यह समझ में आता है । क्योंकि 1 कड़ी अगर विदा हो जाएगी । तो मैं नहीं हो सकूंगा । अगर मेरे पिता के पिता न हों । तो मैं न हो सकूंगा । क्योंकि कड़ी विसर्जित हो जाएगी । लेकिन मेरा भविष्य अगर उसमें कोई कड़ी न हो । तो मैं न हो सकूंगा । समझना बहुत मुश्किल पड़ेगा । क्योंकि उससे क्या लेना देना । मैं तो हो ही गया हूं । लेकिन बुद्ध कहते हैं कि अगर भविष्य में भी जो होने वाला है । वह न हो । तो मैं न हो सकूंगा । क्योंकि भविष्य और अतीत दोनों के बीच की मैं कड़ी हूं । कहीं भी कोई बदलाहट होगी । तो मैं वैसा ही नहीं हो सकूंगा । जैसा हूं । कल ने भी मुझे बनाया । आने वाला कल भी मुझे बनाता है । यही ज्योतिष है । बीता कल ही नहीं । आने वाला कल भी । जा चुका ही नहीं । जो आ रहा है वह भी । जो सूरज पृथ्वी पर उगे । वे ही नहीं । जो उगेंगे वे भी । वे भी भागीदार हैं । वे भी आज के क्षण को निर्मित कर रहे हैं । क्योंकि यह जो वर्तमान का क्षण है । यह हो ही न सकेगा । अगर भविष्य का क्षण इसके आगे न खड़ा हो । उसके सहारे ही यह हो पाता है । हम सबके हाथ भविष्य के कंधे पर रखे हुए हैं । हम सबके पैर अतीत के कंधों पर पड़े हुए हैं । हम सबके हाथ भविष्य के कंधों पर रखे हुए हैं । नीचे तो हमें दिखाई पड़ता है कि अगर मेरे नीचे जो खड़ा है । वह न हो । तो मैं गिर जाऊंगा । लेकिन भविष्य में मेरे जो फैले हाथ हैं । वे जो कंधों को पकड़े हुए हैं । अगर वे भी न हों । तो भी मैं गिर जाऊंगा । जब कोई व्यक्ति अपने को इतनी आंतरिक एकता में अतीत और भविष्य के बीच जुड़ा हुआ पाता है । तब वह ज्योतिष को समझ पाता है । तब ज्योतिष धर्म बन जाता है । तब ज्योतिष अध्यात्म हो जाता है । और नहीं तो वह । जो नॉन एसेंशियल है । गैर जरूरी है । उससे जुड़कर ज्योतिष सड़क की मदारीगिरी हो जाता है । उसका फिर कोई मूल्य नहीं रह जाता । श्रेष्ठतम विज्ञान भी जमीन पर पड़कर धूल की कीमत के हो जाते हैं । हम उनका क्या उपयोग करते हैं । इस पर सारी बात निर्भर है । इसलिए मैं बहुत द्वारों से एक तरफ आपको धक्का दे रहा हूं कि आपको यह खयाल में आ सके कि सब संयुक्त है । संयुक्तता इस जगत का 1 परिवार होना । या 1 आर्गेनिक बॉडी होना । 1 शरीर की तरह होना । मैं सांस लेता हूं । तो पूरा शरीर प्रभावित होता है । सूरज सांस लेता है । तो पृथ्वी प्रभावित होती है । और दूर के महासूर्य हैं । वे भी कुछ करते हैं । तो पृथ्वी प्रभावित होती है । और पृथ्वी प्रभावित होती है । तो हम प्रभावित होते हैं । सब चीज । छोटा सा रोआं तक । महान सूर्यों के साथ जुड़कर कंपता है । कंपित होता है । यह खयाल में आ जाए । तो हम सारभूत ज्योतिष में प्रवेश कर सकें । और असारभूत ज्योतिष की जो व्यर्थताएं हैं । उनसे भी बच सकें । क्षुद्रतम बातें । हम ज्योतिष से जोड़कर बैठ गए हैं । अति क्षुद्र । जिनका कहीं भी कोई मूल्य नहीं है । और उनको जोड़ने की वजह से बड़ी कठिनाई होती है । जैसे हमने जोड़ रखा है कि 1 आदमी गरीब पैदा होगा । या 1 आदमी अमीर पैदा होगा । तो इसका संबंध ज्योतिष से होगा । नहीं  गैर जरूरी बात है । अगर आप नहीं जानते हैं । तो ज्योतिष से संबंध जुड़ा रहेगा  अगर आप जान लेते हैं । तो आपके हाथ में आ जाएगा ।
1 बहुत मीठी कहानी आपको कहूं । तो खयाल में आए । जिंदगी ऐसा ही बैलेंस है । ऐसा ही संतुलन है । मोहम्मद का 1 शिष्य है । अली । और अली मोहम्मद से पूछता है कि बड़ा विवाद है सदा से कि मनुष्य स्वतंत्र है । अपने कृत्य में । या परतंत्र । बंधा है कि मुक्त । मैं जो करना चाहता हूं । वह कर सकता हूं । या नहीं कर सकता हूं । सदा से आदमी ने यह पूछा है । क्योंकि अगर हम कर ही नहीं सकते कुछ । तो फिर किसी आदमी को कहना कि चोरी मत करो । झूठ मत बोलो । ईमानदार बनो । नासमझी है  । 1 आदमी अगर चोर होने को ही बंधा है । तो यह समझाते फिरना कि चोरी मत करो । नासमझी है  । या फिर यह हो सकता है कि एक आदमी के भाग्य में बदा है कि वह यही समझाता रहे कि चोरी न करो । जानते हुए कि चोर चोरी करेगा । बेईमान बेईमानी करेगा । असाधु असाधु होगा । हत्या करने वाला हत्या करेगा । लेकिन अपने भाग्य में यह बदा है कि अपन लोगों को कहते फिरो कि चोरी मत करो । एब्सर्ड है । अगर सब सुनिश्चित है । तो समस्त शिक्षाएं बेकार हैं \ सब प्रोफेट । और सब पैगंबर । और सब तीर्थंकर । व्यर्थ हैं ।
महावीर से भी लोग पूछते हैं । बुद्ध से भी लोग पूछते हैं कि अगर होना है । वही होना है । तो आप समझा क्यों रहे हैं ? किसलिए समझा रहे हैं ? मोहम्मद से भी अली पूछता है कि आप क्या कहते हैं ? अगर महावीर से पूछा होता अली ने । तो महावीर ने जटिल उत्तर दिया होता । अगर बुद्ध से पूछा होता तो बड़ी गहरी बात कही होती ।
लेकिन मोहम्मद ने वैसा उत्तर दिया । जो अली की समझ में आ सकता था । कई बार मोहम्मद के उत्तर बहुत सीधे और साफ हैं । अक्सर ऐसा होता है कि जो लोग कम पढ़े लिखे हैं । ग्रामीण हैं । उनके उत्तर सीधे और साफ होते हैं । जैसे कबीर के । या नानक के । या मोहम्मद के । या जीसस के । बुद्ध और महावीर के । और कृष्ण के । उत्तर जटिल हैं । वह संस्कृति का मक्खन है । जीसस की बात ऐसी है । जैसे किसी ने लट्ठ सिर पर मार दिया हो ।
कबीर तो कहते ही हैं । कबीरा खड़ा बजार में । लिए लुकाठी हाथ । लट्ठ लिए बाजार में खड़े हैं । कोई आए । हम उसका सिर खोल दें ।
मोहम्मद ने कोई बहुत मेटाफिजिकल बात नहीं कही । मोहम्मद ने कहा - अली । एक पैर उठाकर खड़ा हो जा । अली ने कहा कि हम पूछते हैं कि कर्म करने में आदमी स्वतंत्र है कि परतंत्र । मोहम्मद ने कहा । तू पहले 1 पैर उठा । अली बेचारा 1 पैर । बायां पैर । उठाकर खड़ा हो गया । मोहम्मद ने कहा । अब तू दायां भी उठा ले । अली ने कहा । आप क्या बातें करते हैं । तो मोहम्मद ने कहा कि अगर तू चाहता पहले । तो दायां भी उठा सकता था । अब नहीं उठा सकता । तो मोहम्मद ने कहा कि 1 पैर उठाने को आदमी सदा स्वतंत्र है । लेकिन 1 पैर उठाते ही तत्काल दूसरा पैर बंध जाता है । वह जो नॉन एसेंशियल हिस्सा है । हमारी जिंदगी का । जो गैर जरूरी हिस्सा है । उसमें हम पूरी तरह पैर उठाने को स्वतंत्र हैं । लेकिन ध्यान रखना । उसमें उठाए गए पैर भी एसेंशियल हिस्से में बंधन बन जाते हैं । वह जो बहुत जरूरी है । वहां भी फंसाव पैदा हो जाता है । गैर जरूरी बातों में पैर उठाते हैं । और जरूरी बातों में फंस जाते हैं । 

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