सोमवार, नवंबर 21, 2011

बहुत दे दिया धोखा स्वयं को अब और नहीं

मैं यहां तुम्हें स्वपन देने के लिये नहीं हूं । बल्कि बिलकुल इसके विपरीत । मैं यहां तुम्हारे स्वपनों को धवस्त करने के लिये हूं । तुम मेरे बारे यह नहीं कह सकते कि मैं सही हूं । या ग़लत । अधिक से अधिक तुम यही कह सकते हो कि मैं उलझन पैदा कर रहा हूं । लेकिन यही मेरा उपाय है । तुम्हें उलझा दूं । कहां तक तुम यह सह सकोगे कि मैं यहां से वहां । और वहां से यहां बदलता रहूं । 1 दिन तुम चिल्लाने ही वाले हो । दूर रहो । अब निर्णय मैं लूंगा ।  मैं कोई गंभीर कार्य नहीं कर रहा । मैं कार्य कर ही नहीं रहा । यह मेरी मौज है । जो मैं तुमसे बांट रहा हूं । अब तुम इसके साथ क्या करते हो । यह तुम्हारी समस्या है । मेरी नहीं । मेरी देशना है कि अतीत से संपूर्ण संबंध विच्छेद हो । मैं चाहता हूं कि पहले तुम ज़ोरबा की भांति जियो । उस नींव पर ही तुम्हारे बुद्धत्व का मंदिर निर्मित होगा । इस तरह हम बाहर और भीतर को एक ही सूत्र में पिरो देंगे । बाहर भी उतना ही तुम्हारा है । जितना भीतर । मैं तुम्हें यहां हिन्दू । mussalman या ईसाई बनाने के लिये नहीं । वह सब बकवास मेरे लिये नहीं । मैं यहां तुम्हें धार्मिक होने में मदद करने के लिये हूं । बिना किसी विशेषण के । और एक बार तुम इसे समझ लो । तो पूरा संसार एक नये रंग में रंग जाता है । मैं कोई कारण नहीं देखता कि भीतर और बाहर में विभाजन किया जाये । मैं गरीब रहा हूं ।  मैनें अत्यंत गरीबी देखी है । और मैं अमीरी में भी जिया हूं । मेरी मानों । समृद्धि दरिद्रता से कहीं बेहतर है । मैं अत्यंत सरल अभिरुचियों का व्यक्ति हूं ।  मैं किसी भी श्रेष्टतम से संतुष्ट हूं ।  मैं अधिक नहीं चाहता । मैं तुम्हारे किये कुछ कर नहीं रहा हूं । क्योंकि वह भी एक प्रकार का अहंकार है । कोई भी यह सोचे कि वह तुम्हारे लिये कुछ कर रहा है । यह बस घट रहा है ।
मैं कोई विचार नहीं हूं । और न ही मैं कहीं अटका हूं । मैं प्रवाह में हूं । मैं हैराक्लिटस से सहमत हूं कि तुम एक ही नदी में दो बार नहीं उतर सकते । यदि अनुवाद किया जाए । तो इसका अर्थ हुआ । तुम एक ही व्यक्ति को दोबारा नहीं मिल सकते । मैं उससे सहमत ही नहीं हूं । बल्कि एक कदम आगे जाता हूं कि एक ही नदी में तुम एक बार भी नहीं उतर सकते । मनुष्य के संसार में यदि इसका अनुवाद किया जाए । तो अर्थ यह हुआ कि तुम एक ही व्यक्ति को । एक बार भी नहीं मिल सकते । क्योंकि एक बार भी जब तुम उसे मिल रहे हो । तो वह बदल रहा है । तुम बदल रहे हो । संपूर्ण संसार बदल रहा है । मैं यहां किन्हीं मुद्दों पर चर्चा करने के लिये नहीं । अपितु तुम्हारे भीतर एक विशिष्ट गुणवत्ता पैदा करने के लिये हूं । मैं तुम्हें कुछ समझाने के लिये नहीं बोल रहा । मेरा बोलना बस एक सृजनात्मक घटना है ।  मेरा बोलना । तुम्हें कुछ समझाने का प्रयास नहीं । वह तो तुम किताबों से भी समझ सकते हो । और इसके अतिरिक्त लाखों अन्य तरीकों द्वारा यह संभव है । मैं तो यहां केवल तुम्हें रूपांतरित करने के लिये हूं ।
मैं एक साधारण व्यक्ति हूं । मेरे पास कोई करिश्मा नहीं । और मैं करिश्मे में विश्वास नहीं करता ।  मैं पद्धतियों में विश्वास नहीं करता । भले ही मैं उनका इस्तेमाल करता हूं । लेकिन मैं उन पर विश्वास नहीं करता । मैं एक साधारण व्यक्ति हूं । बहुत आम । मैं भीड़ में खो सकता हूं । और तुम कभी मुझे ढूंढ न पाओगे । मैं तुम्हारे आगे नहीं  साथ चलता हूं । मैं बेरोज़गार हूं । मैं कुछ भी नहीं कर रहा । सब इच्छाएं मिट गईं हैं । सब करना तिरोहित हो गया है । मैं बस यहां हूं । तुम्हारे लिये मैं बस एक अस्तित्व हूं । यदि तुम मुझे प्रेम करते हो । तो तुम मेरा उत्साह से स्वागत करोगे । और तुम्हें अत्यंत लाभ होगा । यदि तुम मुझे घृणा करते हो । तो तुम चूक जाओगे । और ज़िम्मेदारी तुम्हारी होगी । अब चुनाव तुम्हारा है । लेकिन मैं कुछ नहीं कर रहा ।
मेरा पूरा प्रयास । एक नयी शुरुआत करने का है । इससे विश्व भर में मेरी आलोचना निश्चित है । लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । परवाह किसे है । गौतम बुद्ध अतीत के सब गुरुओं का प्रतिरूप हैं । शिष्य को दूर रखना होगा । उसे अनुशासन  समादर और आज्ञापालन सीखना होगा । यह एक प्रकार से आध्यात्मिक ग़ुलामी हुई । मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे गुलाम बनो । और मैं नहीं चाहता कि तुम मेरा आज्ञा पालन करो । मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि तुम तुम मुझे समझो । और यदि मेरा अनुभव प्रमाणिक है । और तुम्हारा विवेक उसे समझ पाता है । तो तुम स्वयं ही उसका अनुसरण करोगे । यह आज्ञा पालन न हुआ । मैं तुम्हें कुछ करने को नहीं कह रहा । मैं सिर्फ तुम्हें समझने के लिये कह रहा हूं । और फिर तुम्हारा विवेक जहां तुम्हें ले जाये ।  तुम उसका अनुसरण करो । तुम जो भी बनो । मैं प्रसन्न हूं । बस स्वयं के साथ सच्चे और ईमानदार रहो ।  मैं तुम्हें लुभा रहा हूं । ताकि तुम जीवन के प्रति प्रेमपूर्ण हो सको । थोड़ा और काव्यमयी हो सको । तुम तुच्छ व साधारण के प्रति उदासीन हो सको । ताकि तुम्हारे जीवन में उदात्त का विस्फोट हो जाए ।
मुझे एक उद्धारक की तरह न देखें । इस विचार के कारण ही कि कोई उद्धारक आ गया है । कोई मसीहा आ गया है । लोग वैसे ही जीते रहते हैं । जैसे वे जीते रहे हैं । वे क्या कर सकते हैं ? उनका कहना है कि सब कुछ तभी होगा । जब कोई मसीहा आयेगा । यह उनका ढंग है । रूपांतरण को टालने का । यह उनका ढंग है । स्वयं को धोखा देने का । बहुत हो चुका । बहुत दे दिया । धोखा स्वयं को । अब और नहीं । कोई मसीहा नहीं आने वाला । तुम्हें स्वयं कार्य करना होगा । तुम्हें स्वयं के प्रति । अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी । और जब तुम ज़िम्मेदार होते हो । तो सब कुछ स्वयं घटने लगता है । मैं चाहता हूं कि जो भी बाहर उपलब्ध है । लोग उसके साथ सहजता से जियें । जल्दी न करें । क्योंकि जो भी अनजिया रह गया । तुम्हें वापस खींचेगा । इसे खत्म करें । और तब तुम्हें अपने घर से । या अपने बैंक के खाते से भागना न पड़ेगा ।  क्योंकि वे फिर तुम पर बोझ न रहेंगे । उनका कोई अर्थ ही न रह जायेगा । संभव है । उनका कोई उपयोग हो सके । लेकिन उनमें कोई ग़लती नहीं । ओशो ।

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