सोमवार, नवंबर 21, 2011

मैं रामलीला के रामों की बात नहीं कह रहा हूँ

जब तक दुनिया में हम एक आदमी को दूसरे आदमी से कम्पेयर करेंगे । तुलना करेंगे । तब तक हम एक गलत रास्ते पर चले जाएंगे । वह गलत रास्ता यह होगा कि हम हर आदमी में दूसरे आदमी जैसा बनने की इच्छा पैदा करते हैं । जब कि कोई आदमी किसी दूसरे जैसा न बना है । और न बन सकता है ।
राम को मरे कितने दिन हो गए । या क्राइस्ट को मरे कितने दिन हो गए ? दूसरा क्राइस्ट क्यों नहीं बन पाता । और हजारों हजारों क्रिश्चिएन कोशिश में तो 24 घंटे लगे हैं कि क्राइस्ट बन जाएं । और हजारों हिंदु राम बनने की कोशिश में हैं । हजारों जैन । बुद्ध । महावीर बनने की कोशिश में लगे हैं । बनते क्यों नहीं एकाध ? एकाध दूसरा क्राइस्ट और दूसरा महावीर पैदा क्यों नहीं होता ? क्या इससे आंख नहीं खुल सकती आपकी ? मैं रामलीला के रामों की बात नहीं कह रहा हूं । जो रामलीला में बनते हैं राम । न आप समझ लें कि उनकी चर्चा कर रहा हूं । कई लोग राम बन जाते हैं । वैसे तो कई लोग बन जाते हैं । कई लोग बुद्ध जैसे कपड़े लपेट लेते हैं । और बुद्ध बन जाते हैं । कोई महावीर जैसा कपड़ा लपेट लेता है । या नंगा हो जाता है । और महावीर बन जाता है । उनकी बात नहीं कर रहा । वे सब रामलीला के राम हैं । उनको छोड़ दें । लेकिन राम कोई दूसरा पैदा होता है ?
यह आपको जिंदगी में भी पता चलता है कि ठीक एक आदमी जैसा दूसरा आदमी कहीं हो सकता है ? एक कंकड़ जैसा दूसरा कंकड़ भी पूरी पृथ्वी पर खोजना कठिन है । एक जड़ कंकड़ जैसा । यहां हर चीज यूनिक है । हर चीज अद्वितीय है । और जब तक हम प्रत्येक की अद्वितीय प्रतिभा को सम्मान नहीं देंगे । तब तक दुनिया में प्रतियोगिता रहेगी । प्रतिस्पर्धा रहेगी । तब तक दुनिया में मारकाट रहेगी । तब तक दुनिया में हिंसा रहेगी । तब तक दुनिया में सब बेईमानी के उपाय करके आदमी आगे होना चाहेगा । दूसरे जैसा होना चाहेगा । और जब हर आदमी दूसरे जैसा होना चाहता है । तो क्या फल होता है ? फल यह होता है । अगर एक बगीचे में सब फूलों का दिमाग फिर जाए । या बड़े बड़े आदर्शवादी नेता वहां पहुंच जाएं । या बड़े बड़े शिक्षक वहां पहुंच जाएं । और उनको समझाएं कि देखो चमेली का फूल चंपा जैसा हो जाए । चमेली का फूल चंपा जैसा । चंपा का फूल जुही जैसा । क्योंकि देखो । जुही कितनी सुंदर है । और सब फूलों को अगर पागलपन आ जाए । हालांकि आ नहीं सकता । क्योंकि आदमी से पागल फूल नहीं है ।
आदमी से ज्यादा जड़ता उनमें नहीं है कि वे चक्कर में पड़ जाएं । शिक्षकों के । उपदेशकों के । संन्यासियों के । साधुओं के । आदर्शवादियों के चक्कर में कोई फूल नहीं पड़ेगा । लेकिन फिर भी समझ लें । कल्पना कर लें कि कोई आदमी पहुंच जाए । और समझाए । उनको और वे चक्कर में आ जाएं । और चमेली का फूल चंपा का फूल होने लगे । तो क्या होगा । उस बगिया में । उस बगिया में फूल फिर पैदा नहीं होंगे । उस बगिया में फिर फूल पैदा ही नहीं हो सकते । उस बगिया में फिर पौधे मुरझा जाएंगे । मर जाएंगे । क्यों ? क्योंकि चंपा लाख उपाय करे । तो चमेली नहीं हो सकती । वह उसके स्वभाव में नहीं है । वह उसके व्यक्तित्व में नहीं है । वह उसकी प्रकृति में नहीं है । चमेली तो चंपा हो ही नहीं सकती । लेकिन क्या होगा ? चमेली होने की कोशिश में वह चंपा भी नहीं हो पाएगी । वह जो हो सकती थी । उससे भी वंचित रह जाएगी ।

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