शुक्रवार, अप्रैल 06, 2012

अकेले रहने में ही असली और अनन्त शक्ति है

केवल अबोधता निर्दोषता ही चाव पूर्ण और शौकिया हो सकती है । निर्दोषता के पास ही दुख नहीं होता । ना रोग बीमारी । हालांकि उसके पास इनके हजारों अनुभव होते हैं । अनुभव मन को भृष्ट नहीं करते । लेकिन वो जो पीछे छोड़ जाते हैं । अवशिष्ट । खरोंचे । और यादें । इनसे मन भृष्ट होता है । यह सब एक के ऊपर एक जमते जाते हैं । और तब शुरू होता है - दुख । यह दुख । समय होता है । जहां समय हो । वहां निर्दोषता सरलता नहीं होती । चाव । शौक से दुख पैदा नहीं हो सकता । दुख अनुभव है । अनुभव प्रतिदिन के जीवन का । पीड़ा से भरे जीवन । और क्षणिक सुखों के अनुभव । भयों और निश्चितताओं के अनुभव । आप अनुभवों से पलायन नहीं कर सकते । उनसे बच नहीं सकते । लेकिन इनकी जड़ें आपके मन में गहरे घर कर जायें । इसकी आवश्यकता भी नहीं है । इनकी जड़ें ही अन्य समस्याओं । वैषम्यताओं । द्वंद्वों और निरंतर संघर्षों को पालती पोसती हैं । इनसे बाहर आने का कोई उपाय नहीं है । सिवा इसके कि आप रोज ब रोज । कल आज कल की तरह मरते जायें ।  केवल और अकेला स्पष्ट मन ही शौक और चाव से भरा हो सकता है । बिना शौक और चाव के आप पत्तों पर जमी ओस और पानी पर पड़ती सूर्य की किरणों को नहीं देख सकते । मन की मौज । शौक । और चाव के बिना प्रेम भी नहीं होता ।
बिना किसी से जुड़े या बंधे हुए और निडर होकर । इच्छा को समझ कर उससे मुक्त रहने ।  इच्छा । जो कि भृमों की जननी है । उससे मुक्त रहने में आजादी है । अकेले रहने में ही असली और अनन्त शक्ति है । ज्ञान से ठुंसा हुआ । बंधनों में जकड़ा । नियोजित दिमाग कभी भी अकेला नहीं होता । जो धार्मिक । या वैज्ञानिक । या तकनीकी रूप से नियोजित हो । वह सदैव सीमित होता है । सीमितता ही द्वंद्व का मुख्य घटक है । इच्छाओं में जकड़े आदमी के लिये सौन्दर्य एक खतरनाक चीज है ।
किसी मनुष्य की मौत से अलग । अंततः किसी पेड़ की मौत । बहुत ही खूबसूरत होती है । किसी रेगिस्तान में एक मृत वृक्ष । उसकी धारियों वाली छाल । सूर्य की रोशनी और हवा से चमकी हुई उसकी देह । स्वर्ग की ओर उन्मुख नंगी टहनियां । और तने । एक आश्चर्यजनक दृश्य होता है । एक सैकड़ों साल पुराना विशाल पेड़ बागड़ बनाने । फर्नीचर या घर बनाने । या यूं ही बगीचे की मिट्टी में खाद की तरह इस्तेमाल करने के लिए मिनटों में 


काट कर गिरा दिया जाता है । सौन्दर्य का ऐसा साम्राज्य मिनटों में नष्ट हो जाता है । मनुष्य चरागाह । खेती और निवास के लिए बस्तियां बनाने के लिए जंगलों में गहरे से गहरे प्रवेश कर उन्हें नष्ट कर चुका है । जंगल और उनमें बसने वाले जीव लुप्त होने लगे हैं । पर्वत श्रंखलाओं से घिरी ऐसी घाटियां जो शायद धरती पर सबसे पुरानी रही हों । जिनमें कभी चीते । भालू और हिरन दिखा करते थे । अब पूरी तरह खत्म हो चुके हैं । बस आदमी ही बचा है । जो हर तरफ दिखाई देता है । धरती की सुन्दरता तेजी से नष्ट और प्रदूषित की जा रही है । कारें और ऊंची बहुमंजिला इमारतें ऐसी जगहों पर दिख रही हैं । जहां उनकी उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी । जब आप प्रकृति और चहुं और फैले वृहत आकाश से अपने सम्बन्ध खो देते हैं । आप आदमी से भी रिश्ते खत्म कर चुके होते हैं ।
प्रश्न - आपने हमें बताया कि - अपने दैनिक जीवन में गतिविधियों कार्य व्यवहार का अवलोकन करें । लेकिन वह क्या या कौन सा अस्तित्व है ? जो यह तय करेगा कि किसका अवलोकन करना है । और कब ? कौन तय करेगा कि उसे अवलोकन करना चाहिये ?
कृष्णमूर्ति - क्‍या आपने तय किया है कि - अवलोकन करना है ? या आप केवल अवलोकन कर रहे हैं ? क्या आपने

यह फैसला लिया । तय किया है । और कहा है कि - मैं अवलोकन करने और सीखने जा रहा हूँ ? तब वहां प्रश्न हो सकता है कि - कौन तय कर रहा है ? तब वहां पर कहा ये जा रहा है कि - मैं जरूर करूंगा ? और जब वह असफल रहता है । तब वह अपने आपको दंडात्मक भाषा में बार बार कहता है - मैं करूंगा ही । मुझे करना ही है । तब वहां पर संघर्ष होता है । तो मन मस्तिष्क की वह अवस्था जब - अवलोकन करना फैसला लिया । जाकर तय किया जाता है । वह कतई । कहीं से भी अवलोकन नहीं है । आप सड़क पर चले जा रहें है । और आपके बगल से गुजरा । आपने उसे देखा । और और खुद से कहा - कैसा गंदा है वह ? कैसी बदबू मार रहा है ? मैं कामना करता हूं कि - वह ऐसा और वैसा ना हो ।
जब आप अपने बगल से गुजरने वाले पर अपनी प्रतिक्रियाओं के प्रति जागरूक रहते हैं । जब आप इस बात के प्रति जागरूक रहते हैं कि - आप कोई फैसला दे रहें हैं । आलोचना कर रहें । या किसी चीज को न्यायोचित ठहराने की कोशिश कर रहें हैं । तब आप अवलोकन कर रहे हैं । तब आप यह नहीं कहते कि मुझे फैसला नहीं करना है । मुझे न्यायोचित नहीं ठहराना है । जब कोई आपकी प्रतिक्रियाओं के प्रति जागरूक होता है । तब किसी तरह का निर्णय नहीं होता । आपने देखा होगा किसी ने कल आपकी बेइज्जती की । तुरन्त आपकी मांसपेशियां फड़कने लगती हैं । आप असहज और गुस्सा हो सकते हैं । आप उसे नापसंद करना शुरू कर देते हैं । तो उस नापसंदगी के प्रति जागरूक रहना है । उन सारी प्रतिक्रियाओं के प्रति जागरूक रहें । यह फैसला ना करें कि - आपको अवलोकन करना है । अवलोकन करें । उस अवलोकन में कोई भी अवलोकन कर्ता नहीं होता । ना ही - अवलोक्य.. यानि देखने वाला । और - देखा 


जा रहा.. अलग नहीं होते । तब केवल अवलोकन मात्र ही होता है । अवलोकन कर्ता तब पैदा होता है । जब आप अवलोकन में हेर फेर या जोड़ना घटाना शुरू करते हैं । देखे गये को इकट्ठा कर उस पर नियंत्रण या कब्जा करने की कोशिश करते हैं । जब आप कहते हैं । वह मेरा मित्र है । क्योंकि वह मुझे प्रसन्न करता है । या वह मेरा मित्र नहीं है । क्योंकि उसने मेरे बारे में बुरा गंदा कहा । या आपके बारे में कुछ सच ही कहा । जो आप पसंद नहीं करते । तो अवलोकन को जमा । इकट्ठा । या संग्रह करने वाला । उसमें हेर फेर की गुंजाइश रखने वाला ही अवलोकन कर्ता है । जब आप बिना संग्रह करने । या बिना हेर फेर की इच्छा के अवलोकन करते हैं । तब कोई भी फैसला या निर्णय नहीं करते । आप सारा समय यही करते हैं । इस अवलोकन में निसर्गतः प्राकृतिक रूप से विशेष निश्चित निर्णय प्राकृतिक परिणाम के रूप में आतें हैं । पर यह वह निर्णय नहीं होते । जो अवलोकन कर्ता । अवलोक्य । या अवलोकन को इकट्ठा । जमा या संग्रह कर । उन पर नियंत्रण या कब्जा कर । या उनमें हेर फेर कर करता है । जे. कृष्णमूर्ति

कोई टिप्पणी नहीं:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...