
उच्चाटन आदि अभिचार कर्म में दांयी नाडी उत्तम होती है । शुभ कार्य सम्पादन में । यात्रा में । विष उपचार
में । शान्ति और मुक्ति की सिद्धि हेतु बांयी नाडी उत्तम है । दोनों स्वरों के चलने पर कोई कार्य नहीं करना
चाहिये यह समय विष के समान होता है । सौम्य । शुभ कार्यं में । लाभ के कार्यों में । विजय कार्य में । जीवन कार्य में । आना या जाना हो । तब बांयी नाडी उत्तम है । घात । प्रतिघात । युद्ध । क्रूर कार्य । भोजन । स्त्री से सम्भोग । प्रवेश ( किसी नयी जगह ) तथा तुच्छ कार्य हेतु दांया स्वर उत्तम है । शुभ अशुभ । लाभ हानि । जय पराजय । जीवन मृत्यु । के विषय में प्रश्न करने पर । प्रश्नकर्ता की मध्यमा नाडी चल रही हो तो कार्य सफ़ल नही होता । अन्य दोनों में से कोई चल रही हो तो सफ़लता निश्चित है । यहां नाडी । स्वर । सुर से आशय मनुष्य़ की नाक से प्रवाहित होने वाली स्वांस वायु से है । स्वर बिग्यान का अच्छा ग्यान होने से इसको बदला जा सकता है । सम किया जा सकता है । उदाहरण के लिये भयंकर गर्मी की स्थित में आप चन्द्र नाडी का उपयोग जानते हों । तो आप को भरी गर्मी में सर्दी का अहसास होगा । इसका सबसे बडा सबूत है । कई बार कुछ लोगों को सडी गर्मी में बुखार आने पर बेहद सर्दी लगती है । इसका यही रहस्य है । तब वह क्रिया सिस्टम बिगडने से होती है ।
********
" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । " " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें