शनिवार, अगस्त 07, 2010

सूर्य के रथ का रहस्य..

सूर्य के रथ का विस्तार नौ हजार योजन है । एक योजन में बारह किलोमीटर होते है । उसका जुआ तथा रथ के बीच का भाग अठारह हजार योजन है । उसकी धुरी एक करोड सत्तावन लाख योजन लम्बी है । इसमें चक्र लगा हुआ है । पूर्वाह्य । मध्याह्य । अपराह्यरूप तीन नाभि है । परिवत्सर आदि पांच अरे हैं । छह ऋतुयें । छह नेमियां हैं । अक्षयस्वरूप संवतसर युक्त उस चक्र में पूरा कालचक्र सन्निहित है । सूर्य के रथ की दूसरी धुरी चालीस हजार योजन लम्बी है । रथ के पहियों के अक्ष साढे पांच हजार योजन लम्बे हैं ।
दोनों अक्षों के परिमाण के समान जुये के दोनों अर्द्धों की लम्बाई है । सबसे छोटा अक्ष जुये के अर्द्ध भाग वाला है । जो रथ के ध्रुवाधार पर अवस्थित है । रथ के दूसरे अक्ष में चक्र लगा हुआ है । जो मानसोत्तर पर्वत पर स्थित है । गायत्री । बृहती । उष्णिक । जगती । त्रिष्टुपि । अनुष्टुप । पंक्ति ये सात छ्न्द । सूर्य के सात घोडे हैं । चैत्र मास में सूर्य के रथ पर । धाता नामक आदित्य । कृतुस्थला नाम की अप्सरा । पुलस्त्य ऋषि । वासुकि नाग । रथकृत ग्रामणी । हेति नाम का राक्षस । और तुम्बुरु गन्धर्व होता है ।
वैशाख में । अर्यमा आदित्य । पुलह ऋषि । पुज्जिकस्थला अप्सरा । रथौजा यक्ष । प्रहेति राक्षस । कच्छनीर
सर्प । तथा नारद गन्धर्व होता है । जेठ मास में । मित्र आदित्य । अत्रि ऋषि । तक्षक नाग । पौरुषेय राक्षस । मेनका अप्सरा । हाहा नामक गन्धर्व । रथस्वन यक्ष रहता है । आषाढ महीने में इस रथ पर । वरुण नाम
का आदित्य । वसिष्ठ ऋषि । रम्भा तथा सहजन्या अप्सरा । हूहू गन्धर्व । रथचित्र यक्ष । राक्षस गुरु शुक्र की
ड्यूटी रहती है । सावन महीने में इस रथ पर । इन्द्र आदित्य । विश्वावसु गन्धर्व । स्रोत यक्ष । एलापत्र सर्प । अंगिरा ऋषि । प्रम्लोचा अप्सरा । सर्प नाम का राक्षस रहता है । भादों माह में । विवस्वान आदित्य । उग्रसेन गन्धर्व । भृगु ऋषि । आपूरण यक्ष । अनुम्लोचा अप्सरा । शंखपाल सर्प । तथा व्याघ्र राक्षस रहता है । आश्विन यानी क्वार मास में । सूर्य रथ पर । पूषा आदित्य । सुरुचि गन्धर्व । धाता और गौतम ऋषि । धनज्जय नाग । सुषेण और घृताची अप्सरा । रहती है । कार्तिक महीने में । पर्जन्य आदित्य । विश्वावसु गन्धर्व । भरद्वाज ऋषि । एरावत सर्प । विश्वाची अप्सरा । सेनजित यक्ष । आप नामक राक्षस की ड्यूटी रहती है । मार्गशीर्ष यानी अगहन महीने में । अंशु आदित्य । कश्यप ऋषि । तार्क्ष्य महापद्म नाग । उर्वशी अप्सरा । चित्रसेन गन्धर्व । विधुत राक्षस की ड्यूटी रहती है । पौष माह में भर्ग आदित्य । क्रतु ऋषि । उर्णायु गन्धर्व । स्फ़ूर्ज राक्षस । कर्कोटक नाग । अरिष्टनेमि यक्ष । पूर्वचित्ति अप्सरा । रथ में रहते हैं ।
माघ मास में त्वष्टा आदित्य । जमदग्नि ऋषि । कम्बल सर्प । तिलोत्तमा अप्सरा । ब्रह्मपेत राक्षस । ऋतजित यक्ष । धृतराष्ट्र गन्धर्व । रथ पर रहते हैं । फ़ागुन महीने में विष्णु आदित्य । अश्वतर सर्प । रम्भा अप्सरा । सूर्यवर्चा गन्धर्व । सत्यजित यक्ष । विश्वामित्र ऋषि । यग्यापेत राक्षस रहता है ।
विष्णु की शक्ति से तेजोमय बने मुनिगण । सूर्यमण्डल के सामने उपस्थित रहकर स्तुति करते हैं । गन्धर्व यशगान करते हैं । अप्सराएं नाचती हैं । राक्षस रथ के पीछे पीछे चलते है । सर्प सूर्य रथ को वहन करते हैं ।
यक्ष बागडोर सम्हालते हैं । बालखिल्य नाम के ऋषि उस रथ को सब ओर से घेरकर स्थित रहते हैं । चन्द्रमा का रथ तीन पहियों वाला है । इसके दस घोडे कुन्द फ़ूल के समान सफ़ेद रंग के हैं । जो रथ के जुए में दांये बांये पांच पांच की संख्या में जुते हुये हैं ।
चन्द्रमा के पुत्र बुध का रथ । जल तथा अग्नि से मिश्रित द्रव्य का बना है । उसमे वायु के समान वेग से चलने वाले भूरे रंग के आठ घोडे है । शुक्र का रथ । सैन्यबल से युक्त । ऊंचे शिखर वाला । प्रथ्वी के घोडों से जुता हुआ । तरकश तथा ऊंची पताका से सुसज्जित है ।
भूमिपुत्र मंगल का रथ । तपाये गये सोने के समान रंग वाला है । उसमें आठ घोडे हैं । जो लाल रंग के हैं । और अग्नि से प्रादुर्भूत हैं । ब्रहस्पति का रथ सोने का है । इसमें आठ घोडे हैं जो पीलापन लिये हुये सफ़ेद रंग के हैं । ब्रहस्पति एक राशि मे एक वर्ष रहते हैं । शनि का रथ । आकाश में उत्पन्न होने वाले चितकबरे रंग के घोडो वाला है । ये रथ धीरे धीरे चलता है । इसीलिये शनि का मन्दगामी नाम भी है । स्वर्भानु यानी राहु के रथ में आठ घोडे हैं । जो काले रंग के हैं । राहु का रथ पीले से रंग का है । इसके घोडे एक बार रथ में जोत देने पर निरन्तर चलते रहते हैं । इसी प्रकार केतु के रथ में भी आठ घोडे हैं । उनका रंग धुंए के समान है । इस प्रकार सूर्य । चन्द्र । और अन्य ग्रहो से युक्त । दीप । नदी । पर्वत । समुद्र आदि से समन्वित समस्त भुवन मण्डल भगवान का विराट शरीर है ।
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