शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

शेरा । जूली....1

30 जुलाई 2010 को शाम के छह बजे हैं । मैं लगभग हमेशा की ही तरह अपने घर के सामने सडक पर बैठा हूं । महज 300 मीटर की यह सडक हमारे घर के तीस मीटर आगे जाकर बन्द है । अतः आम सडकों जैसा इस पर आवागमन नहीं रहता । सडक के पार लगभग 80 मीटर चौडी और 200 मीटर लम्बी जगह खाली प्लाट के रूप में है । जिसमें उनके मालिक बगीचे और क्यारियां आदि बनाकर सब्जी उगाते हैं । मेरे घर के ठीक साइड में 20 बाइ 50 मीटर का प्लाट बिजली के हाईटेंशन पोल होने की वजह से खाली पडा रहता है । जिसमें प्राकृतिक रूप से पेड पौधे उगे हुये हैं । इस तरह घर के आसपास प्राकृतिक और खुला वातावरण स्वतः ही है । इसलिये हम सडक का इस्तेमाल एक खूबसूरत लान की तरह करते हैं ।
तो 30 जुलाई की शाम को मैं सडक पर बैठा हूं । और सब कुछ रोजाना जैसा ही है । बच्चे खेल रहें हैं । लोग आ जा रहे हैं । मगर एक कमी है । जिसको मैं बार बार महसूस कर रहा हूं । मुझे आज शेरा दिखाई नहीं दे रहा । शेरा मेरे कुत्ते का नाम है । आज शेरा कहां चला गया ? जब मैं रोजाना बैठता था । वह पूंछ हिलाता हुआ मेरे पास आकर प्यार जताता था । मेरे द्वारा हाथ से सहला देने से ही बेहद अपनत्व महसूस करता था । कभी इधर । कभी उधर दिखाई देता था । पर आज कहां चला गया । घर वाले । आसपास के बच्चे भी शेरा शेरा नहीं कर रहे । आखिर शेरा कहां चला गया ? आज से ढाई साल पहले मेरे रिश्तेदार राजेश की कुतिया टफ़ी ने सात खूबसूरत पिल्लों को जन्म दिया ।
जिनमें से एक जोडा मेरे घरवाले लाये । रुई के खिलौने जैसे बेहद सुन्दर दिखने वाले छोटी नस्ल के इन पिल्लों का नाम नर । मादा के हिसाब से हमारी किरायेदार महेश्वरी द्वारा शेरा । जूली रखा गया । विभिन्न क्रीडाओं को करते हुये । सबका दिल बहलाते हुये । शेरा । जूली भी धीरे धीरे बडे होने लगे । और सबको घर के सदस्य जैसे ही लगने लगे । लगभग एक साल बाद जब मैं आगरा स्थिति अपने घर में रहने आ गया । तो शेरा जूली भी हमारे साथ थे । कहते हैं । संयोग वियोग पहले से ही निर्धारित होता है । इधर उधर भागते । उछलते । कूदते । खेलते । शेरा जूली घर में उदासी जैसा माहौल आने ही नहीं देते थे । लेकिन होनी की बात । घर वालों का मन बन गया कि एक ही कुत्ता ठीक है । दो की देखरेख में परेशानी होती है । अतः एक किसी को दे दिया जाय । हालांकि कुछ जानकारों ने सलाह भी दी । कि कुत्ता बचपन से जिस घर में पलता है । वहां से बिछड जाने पर जीवित नहीं रहता । क्योंकि बेहद वफ़ादार और प्रेम करने वाला ये जानवर अपने पहले " परिवार " को कभी भूल नहीं पाता । पर होनी
भी अपनी जगह प्रवल होती है । हमारे एक परिचित सत्यदेव की कुतिया मर गयी थी । उससे पहले उनकी युवा लडकी एक एक्सीडेंट में मर गयी थी । लडकी के मरते ही कुतिया बेहद उदास रहने लगी ।
उसने धीरे धीरे खाना पीना छोड दिया और अंततः वह भी पूरी वफ़ादारी निभाते हुये दो महीने बाद ही मर गयी । क्योंकि कुतिया लडकी से अन्य की अपेक्षा अधिक प्रेम करती थी । इन दोनों के असमय मौत से सत्यदेव की पत्नी बेहद दुखी रहने लगी । और इधर हमारे घर में ऐसे हालात बन गये कि एक ही कुत्ते को रखने का निर्णय सबको ठीक लगा । अतः शेरा की जोडी जूली सत्यदेव को दे दी गयी । वे दूसरे शहर में रहते थे । बेचारी जूली को कुछ नही पता था कि अगले कुछ क्षणों में उसके साथ क्या होने वाला है ।
लेकिन होनी और मानव स्वभाव बडा विचित्र है । हमें अपना स्वार्थ ही अपना फ़ायदा ही सब कुछ दिखाई देता है । इससे दूसरे के जीवन पर क्या प्रभाव होगा । ये हम नहीं सोच पाते हैं । जूली की विदाई का समय आ गया । हालांकि सबको दुख हो रहा था । फ़िर भी उसे बिस्कुट आदि खिलाकर सबने हाथ से सहलाकर प्यार किया और मारुति वैन में बिठाने लगे । हकबकाई जूली इन नयी परिस्थितियों से भयभीत सी हो रही थी । और बार बार हम लोगों की तरफ़ देख रही थी । मानों कह रही हो । क्यों मुझे इस घर से निकाल रहे हो ? क्यों मेरे साथी से जुदा कर रहे हो ? पर जानवर बेचारा बेबस होता है । वैन में बैठकर उसने खिडकी के शीशे से बेहद करुणा भरी दृष्टि से " अपने घर " हम सबको देखा । सबकी आंखों में आंसू आ गये । वैन एक झटके से आगे बड गयी । हमारे " क्षणिक " आंसू शीघ्र सूख गये । पर जूली के आंसू बहते रहे ( बाद में सत्यदेव ने मुझे बताया ) । शेरा वैन के पीछे पीछे जूली के लिये दूर तक दौडा । और अंत में आकर हम लोगों के पास " हों..हों " की दुखभरी आवाज निकालते हुये पूछ्ने लगा कि क्यों तुमने जूली को भेज दिया । क्या उसकी चार रोटियां ही ज्यादा खर्च बडाती थी ? वास्तव में इस कटु सत्य का हमारे पास कोई उत्तर नहीं था । बेबस जानवर उदास होकर एक कोने में बैठ गया । अब उसके साथ
खेलने वाला उसका जैसा कोई नहीं रहा । तीन चार दिन तक उसने ठीक से कुछ खाया पीया भी नहीं । उछलकूद भी नहीं की । फ़िर जैसा कि इंसान बडे से बडा दुख भूल जाता है । कुछ दिनों में स्थिति सामान्य हो गयी । जूली की याद हल्की होने लगी । हालांकि शेरा उसे अन्दर से नहीं भूल सका । सत्यदेव के घर में जूली को बहुत प्यार से रखा गया । पर इसके बाबजूद वह हम सबको नहीं भूल पायी । एक महीने के बाद ही उसका खाना पीना कम हो गया । और दो महीने में ना के बराबर । फ़िर वह उदास एक ही स्थान पर बैठी रहती । खाना खाना बिलकुल बन्द । और जैसा कि मुझे आभासित था । तीन महीने भी पूरे नहीं हुये । जब वह इस निष्ठुर संसार से विदा हो गयी । यहां मैंने अदृश्य प्रेम का साक्षात उदाहरण देखा । जूली के अंतिम समय में शेरा ने उसके सामने न होते हुये भी खाना नहीं खाया और उदास रहा । और उसकी मृत्यु के समय वह छत वाले कमरे में जाकर रोया । और देर तक रोता रहा । इससे ज्यादा एक जानवर बेचारा क्या कर सकता है ? निश्चय ही जूली अपने अंतिम समय तक शेरा को हम सबको याद करती रही । कि शायद उसके " घरवाले " एक बार फ़िर से उसे लेने आ जाय । मैंने जब उसकी बीमारी
की खबर फ़ोन पर सुनी । तो मैंने कहा भी । उसे ले आओ । लेकिन घर वाले नहीं माने । हमने उसे छोड दिया । पर वो हमको दिल से नहीं निकाल सकी और इस असार संसार से विदा हो गयी ।
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