रविवार, जुलाई 04, 2010

प्रलय में पेङों की भूमिका ?



प्रलय की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है । प्रलय का कारण भी निश्चित हो चुका है । प्रलय कासमय क्योंकि अति नजदीक आ चुका है । इसलिये ये भी तय है । कि प्रलय किसी भी हालत में टलेगी नहीं । क्योंकि प्रभु के विधान का अनुसार प्रत्येक चीज का संतुलन बनाये रखना प्रकृति
की " डयूटी " में शामिल है । ये " असंतुलन " क्या है ? और कैसा है ? आपने देखा होगा । कि चारों तरफ़ अपार जनसमूह नजर आता है । आदमी है । पर रहने को मकान नहीं है । पीने को जल नहीं है । खाने को भोजन नहीं है । इस तरह आदमी अति विषम परिस्तिथियों में जीवन गुजार रहा है । कोई अत्यधिक अमीर है । किसी के पास खाने के लाले हैं । टेम्पो ( गाँव क्षेत्रों में चलने वाला तीन पहिये का भारी वाहन ) जैसी घटिया सवारी में लोग इस तरह लटककर जाते हैं ।रेलगाङी की छत पर लोग इस तरह सफ़र करते हैं कि उतने तो उसके अन्दर भी नहीं करते होंगे । इस सब को देखकर ऐसा लगता है । मानों हम प्राचीन युग में रह रहे हों । जहाँ साधनों का बेहद अभाव है । आदमी ने खुद को बङाने के अलावा हर चीज को घटा दिया है ।
इसलिये प्रलय का होना । किसी एक कारण से नहीं होगा । बल्कि प्रत्येक चीज के दुरुपयोग से पैदा हुआ भारी असंतुलन प्रलय का हाहाकार लायेगा । पर एक बात तय है । इसका मुख्य कारण प्रथ्वी के अन्दर बङता ताप और पानी की कमी मुख्य होगा ।
प्रलय 2014 to 2015 अपने दो पूर्व प्रकाशित लेखों में मैंने प्रलय के अन्य कारण । उच्चकोटि के संतो का ध्यान अवस्था में प्रलय को देखना । प्रलय में जमीन के अन्दर के पानी की भूमिका । आदि का उल्लेख किया था । प्रलय में पेङों और पक्की ऊँची इमारतों की भी भूमिका होगी । इस सम्बन्ध में विचार करते हैं । आप " यूकेलिप्टस " नाम के काफ़ी ऊँचाई वाले पेङ से भली भांति परिचित होंगे । अक्सर सरकार द्वारा यह वृक्ष सङक के दोनों और बङी विशाल मात्रा में लगाया जाता है । आप शायद इस वृक्ष की खासियत न जानते हों । यह प्रथ्वी के अन्दरूनी जल का निर्जलीकरण करने में बेहद माहिर है । यह क्योंकि चिकने पत्तों और ऊँचाई वाला वृक्ष है । इसलिये इसे बेहद ज्यादा मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है । ( मैं इस तथ्य के बारे में " गारंटी " से तो नहीं कह सकता पर मेरी जानकारी के अनुसार मोटे और चिकने पत्ते वाले पेङ जमीन से अधिक मात्रा में पानी का उपभोग करते हैं । ) ऐसे वृक्षों का अनुपात कितना कम या ज्यादा हुआ है । इस बारे में मैं कोई सटीक बात तो नहीं कह सकता । पर मैंने अपने छोटे से ही जीवन में जहाँ सङक के किनारे या अन्य स्थानों पर " नीम , पीपल , शीशम , जामुन , आम , लभेडा बरगद , गूलर , इमली ..आदि जैसे बहु उपयोगी और मानव जीवन की हर तरह से रक्षा करने वाले वृक्षों
की बहुतायत देखी थी । उसके स्थान पर अपरिचित से लगने वाले ढेरों वृक्ष नजर आने लगे । ऐसा विदेशी फ़ेशन के आकर्षण से हुआ । अथवा किसी और वजह से मैं नहीं कह सकता । एक देशी नीम का ही उदाहरण ले लें । पहले यह अति उपयोगी वृक्ष लगभग हर चबूतरे की शान बङाता था । सुबह उठते ही नीम की दातुन । फ़ोङे फ़ुंसी में नीम छाल की खोंटी । रक्त विकार में सुबह नीम की कोंपले चबाना । और इन सबसे बङकर हमारे आसपास की वायु को शुद्ध करने में जितना ये पेङ सहायक है । उतना दूसरा वृक्ष मैंने नहीं सुना । तो इस तरह के पर्यावरण की रक्षा और संतुलन करने वाले वृक्षों को हमने जीवन से निकाल दिया । और उसके स्थान पर नुकसानदायक वृक्षों को अपना लिया । मैंने केवल तथ्य की ओर संकेत किया है । विस्तार से नहीं लिखा । आप विद्वान पुरुषों से चर्चा कर देखना यह बात कितनी सही है । अब आ जाईये । बहुमंजिला विशाल आलीशान इमारतों की ओर । ये एकदम मेरा निजी ख्याल है । जो गलत भी हो सकता है । आप लोगों में से जिनको " चीका मिट्टी " की दीवालों के कच्चे घरों में रहने का अनुभव होगा । वो इस चीज को बखूबी समझ सकते हैं । ये " कच्चे घर " साधारण नहीं बल्कि एयरकंडीशन
इमारतों को " चैलेंज " करने वाले होते हैं । इन घरों में बिना किसी खर्च । बिना किसी टेंशन के । गरमी में ठंडा । और ठंड में । गरम रहने की क्षमता होती है । ये पक्की चमकती दमकती इमारतों की तरह उनके पेंट आदि से होने वाला दुष्प्रभावी केमिकल रियेक्शन भी नहीं छोङते ।
खैर ! ये बात अलग है । मैं अपना एक अनुभव आपको बता रहा हूँ । मैंने अनुभव किया । कि गरमी के दिनों में मेरे मकान के तापमान से । घर के बाहर सङक पर । उसका तीस प्रतिशत ही होता है । यही हाल सर्दियों के दिनों में होता है । घर के अन्दर तापमान में जितनी गिरावट होती है । बाहर उससे चालीस प्रतिशत अधिक होता है । प्रलय के कारण में तापमान का बढना मुख्य है । तब मेरे दिमाग में यह विचार आया कि कोलतार की गरम सङकें । और लोहा स्टील जैसी धातु और पत्थर का उपयोग करके बनायी गयी मजबूत इमारतें कितनी गरमी " आब्जर्व " करती होगीं । और यह गरमी क्या प्रथ्वी के अन्दर नहीं समाती होगी ? यदि ऐसा होता होगा तो एक दिन में प्रथ्वी कितना ताप सहन करती होगी ? और इस ताप को शीतलता पहुँचाने वाला भूगर्भ स्थित जल पहले ही लगभग गायब हो चुका है । " प्रलय में पानी की भूमिका " वाला मेरा लेख पढकर अमेरिका से उपाध्याय जी ने बताया । कि
अमेरिका में भारत आदि देशों की तरह पानी के लिये समर्सिबल पम्प का उपयोग नहीं होता । बल्कि सरकारी स्तर पर टंकी द्वारा पानी की आपूर्ति होती है । तो भी बात तो वही है । टंकी टयूबबैल आदि के द्वारा जमीन से पानी लिया और उपयोग के बाद जमीन के सोखने के बजाय पक्की नालियों आदि से होता हुआ पानी हमसे बहुत दूर चला गया । और हमारे नीचे की जमीन प्यासी रह गयी । इसीलिये तो प्रलय का शिकार वही भूमि अधिक होगी । जहाँ कच्ची जमीन कम और पक्की अधिक है । विशेष-- नये पाठक पूरी जानकारी हेतु " प्रलय " विषयक मेरे दो अन्य लेख भी पढें ।
" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । " " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु
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