शनिवार, जुलाई 17, 2010

फ़ेरे उल्टे कर लो..?




शाम का समय था । सतसंग चल रहा था । महाराज जी के श्रीमुख से अमृत वचनों की बरसात से हम शिष्य साधक और अन्य प्रेमीजन अपार आनन्द अनुभव कर रहे थे । वैसे महाराज जी प्रायः सामान्य रूप से सतसंग कम ही करते हैं । पर जब कभी ऐसे प्रेमी आ जाते हैं । जो शिष्य नहीं होते । तो महाराज जी उनकी जिग्यासा और भक्ति तत्व के कुछ रहस्यों पर प्रवचन करते हैं । तब उन भाग्यशाली शिष्यों को जो उस वक्त उपस्थित होते हैं । उस ग्यान गंगा में स्नान का मौका प्राप्त हो जाता है । ऐसे ही एक प्रवचन में एक आदमी जो बाहर से आया था । महाराज जी का उपदेश । मानव जीवन का वास्तविक लक्ष्य । जीते जी मुक्ति कैसे हो । सहज भगवत प्राप्ति कैसे हो । चौरासी लाख योनियों में जीव की दुर्दशा आदि पर सहज सरल प्रवचन सुनकर आत्मविभोर हो उठा । पर उसके पास भी ढेरों शंकायें मौजूद थी । इससे पूर्व उसने " आत्म ग्यान " का असली सतसंग कभी सुना नहीं था । और भागवत सप्ताह और पुजारी बाबाओं के प्रवचन में उसने सुन रखा था कि ग्रहस्थ धर्म सबसे बङा धर्म होता है ।
हाँलाकि इस बात की पुष्टि या सिद्धता के लिये उसके पास ठोस बात नहीं थी । पर ये बात बेहद अमिटता से उसके मानसपटल पर अंकित हो चुकी थी । सत्य है । ये उसके फ़ायदे का सौदा था और बिना कुछ अतिरिक्त किये हुये ही वह पुण्यात्मा और धर्मात्मा की उपाधि को प्राप्त था । ये स्थिति संसार में बनाबटी महात्माओं द्वारा फ़ैलायी हुयी है । झूठे को झूठा मिला । हाँ जी हाँ जी होय । सांच कहे तो जग मारन धावे । झूठन को पतियावे । गुरुआ तो घर घर फ़िरे । कन्ठी माला लेय । नरके जाओ चाहे सरगे जाओ । मोय रुपैया देयु । दो रुपये से पाँच रुपये में ही ये दूधो नहाओ । पूतों फ़लो । नौकरी लगे । बच्चे राज करेंगे । सात पीङिंयाँ आनन्द करेगी । ऐसा आशीर्वाद दे देते है । कोई मन्दिर आदि का बङा पुजारी हुआ । तो एक सौ एक रुपये में असम्भव काम बनने का आशीर्वाद दे देगा । बताओ इस तरह सब कुछ आसानी से होने लगे तो विश्व में ऐसा कोई भी नहीं है । जो अनेक समस्याओं से न घिरा हो । ये बाबा भगवान शंकर की उस बात को भी झूठा कर देते हैं । निज अनुभव तोसे कहूँ खगेशा । बिनु हरि भजन न मिटे कलेशा । तो साहब । इससे पहले उस आदमी ने आत्म ग्यान का सतसंग सुना ही नहीं था । जो हमें झिंझोङकर जगाता है । हमारी आँखे खोल देता है ? बल्कि वह अन्य महात्माओं के सतसंग के अनुसार अपने को सही स्थिति में समझ रहा था । महाराज जी के सतसंग ने उसे झिंझोङ दिया । पर इसमें एक " लेकिन " लग गयी । वो लेकिन ये थी । कि घर ग्रहस्थी को निभाना मानव का सबसे बङा और पहला धर्म है । और घर ग्रहस्थी के चलते वह भजन और सतसंग के लिये वक्त नहीं निकाल पाता था । उसका सबसे मजबूत तर्क ये था कि पत्नी के साथ " सात फ़ेरे " लेकर उसे सात जन्म निभाने का वचन दिया है । ये " बेङी " उसे धार्मिक जीवन के लिये समय ही नहीं देती । महाराज जी ने हँसी में कह दिया । कि अग्नि के गिर्द " सात फ़ेरे " लगाकर तुम सात जन्म के लिये बँध गये । तो
फ़िर से अग्नि जलाकर " सात फ़ेरे " उल्टे कर लो । बन्धन खुल जायेगा । ये कितनी अग्यानता भर दी है । वास्तविकता यही है । आज भी शादी होती है । फ़ेरे होते हैं । तो बातें तो वही होती हैं जो ऊपर लिखी हैं । यानी ये पति पत्नी का बन्धन सात जन्म तक हो गया । इस जीवन में ये करूँगा । वो करूँगा । ये वचन देता हूँ । वो वचन देती हूँ । आप किसी शादी में जब ये रस्म हो रही हो । इन वचनों को नोट करके देखना । बङे लुभावने वचन होते हैं । जैसे एक वचन ये हैं । कि मैं सास श्वसुर की पूरे मन से सेवा करूँगी । कितनी बहुयें करती हैं ? इसी प्रकार आप देखना कि वर वधू जो एक दूसरे को वचन देते हैं । उनकी कुछ ही दिनों में धज्जिंयाँ उङ जाती हैं । सात जन्म तो बहुत दूर एक जन्म निभाना मुश्किल हो जाता है । सात जन्म का फ़ार्मूला वास्तव में शास्त्र और वैदिक परम्परा पर आधारित तो है । पर उस फ़ार्मूले के लिये सतयुग जैसा वातावरण होना जरूरी है । बताने की आवश्यकता नहीं । आज के समय में पति पत्नी के सम्बन्धों का क्या हाल है । ये कोई रहस्य की बात नहीं है । प्रभु भक्ति में सात फ़ेरे
बाधक है । तो वो किस काम के । प्रभु भक्ति से बङी तो कोई उपलब्धि है ही नहीं । जाके प्रिय न राम वैदेही । तजिये ताहि कोटि वैरी सम जधपि परम सनेही ।
" जाकी रही भावना जैसी । हरि मूरत देखी तिन तैसी । " " सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा । जिम हरि शरण न एक हू बाधा । " विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

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