शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

शेरा का जाना ...2

जिसने जन्म लिया है उसको निश्चित मरना है । शेरा अब अकेला था । घर के लोग बिजी रहते थे । एक पालतू जानवर की क्या इच्छा होती है । इससे बहुत कम इंसानों को मतलब रहता है । शेरा ने भी नई परिस्थितियों में खुद को ढाल लिया था । जिस गेट पर कभी दोनों साथ बैठते थे । वहां अकेला बैठा हुआ
वह आने जाने वालों को देखता रहता था । धीरे धीरे छह महीने और गुजर गये । घर के व्यस्त लोगों की हालत से वाकिफ़ होकर उसने जिंदगी से समझौता कर लिया और स्वभाव से एकाकी होने लगा । फ़ुरसत के पलों में जब कभी उसे बुलाते । कभी हमें इकठ्ठा देखकर वह स्वयं ही आ जाता । और घर के किसी सदस्य द्वारा हाथ फ़िराने पर प्रेम से पूंछ हिलाते हुये दोहरा होने लगता ।...ये सब बातें आज मुझे याद आ रही थी । ढाई साल का पूरा घटनाक्रम मेरे आगे रील की तरह घूम रहा था । जब शेरा हमें छोडकर चला गया था । कहां चला गया था शेरा ?
सडक पर बैठे बैठे जब आज मुझे शेरा दिखाई नहीं दे रहा । तब मुझे उसकी अहमियत समझ में आ रही थी । एक जीव जिसमें सभी भावनाएं हमारे ही समान थी । बल्कि प्रेम के मामलों तो जानवर हमसे चौगुना प्रेम करते है । यह बात ठीक से वही लोग समझ सकते हैं । जिनके घर कुत्ता या कोई जानवर पला हुआ हो ।
वास्तव में हम इतने बिजी भी नही थे । बल्कि अपने स्वार्थ में मस्त थे । तब हमें उसका कोई महत्व समझ में नहीं आता था पर आज आ रहा था । आज बेधडक लोग हमारे घर में घुस रहे थे । क्योंकि उन्हें रोकने वाला जा चुका था । आज यों ही हम अपने कामों में लगे हुये थे । क्योंकि बार बार आकर हमें आकर्षित करने वाला शेरा जा चुका था । निश्चय ही उसकी ये कमी बेहद खल रही थी । मां भी सब कुछ जानते हुये आज मानों भूल गयीं थी । और कह रही थी । कि ये शेरा की रोटी है । दूध मिलाकर खिला दो । पर किसे खिलाते । खाने वाला जा चुका था ?
आज से ठीक एक महीने पहले की बात है । शेरा सुस्त रहने लगा था । पर हमने कम ही ध्यान दिया था । वह सुस्ती के बाद भी अपनी आगन्तुकों को रोकने आदि की ड्यूटी पूरी तरह से निभाता था । लेकिन ज्यादा एकाकी और सुस्त हो गया था । माता पिता ने कहा भी कि शेरा ज्यादा सुस्त रहने लगा है । पर बात आयी गयी ही हो गयी । अब वह अक्सर छत के कमरे में अकेला । बाहर के कमरे में अकेला एक कोने में बैठा रहता । और कमजोर रहने लगा था । हम लोगों के बुलाने पर आ जाता । पर उसके उत्साह में वो बात नहीं थी । खाना भी बेहद कम खाने लगा था । मैंने घर वालों से कहा । किसी भी जीव की जिंदगी में खालीपन हो । कोई उद्देश्य न हो । कोई सुख दुख
का साथी न हो । कोई बात करने वाला न हो । खेलने वाला न हो । इन चीजों के कोई विकल्प न हों । तो स्वाभाविक जीव जीते जी ही मरना शुरू हो जाता है । लेकिन ये सब जानते हुये भी हम किसी के लिये कुछ नहीं कर सकते । क्योंकि इस सबके लिये एक बलिदान की । एक समभई की आवश्यकता होती है । सबकी भावनाओं को समझने । उसे सुख पहुंचाने का प्रयत्न करने पर ही सब कुछ सही रह सकता है ।
जिसे वो जानवर तो अपने कर्तव्य और व्यवहार के तौर पर बखूबी निभा रहा था । पर हम व्यर्थ के प्रपंचो में उलझे इंसान नहीं निभा पाते । लिहाजा इसका परिणाम निश्चित हो जाता है । आज से ठीक आठ दिन पहले की बात है । शेरा ने खाना पीना ना के बराबर कर दिया था । अब उसके शरीर में पहले जैसी शक्ति न रह गयी थी । फ़िर भी कोई आहट होते ही वह भौंक कर बाहर आ जाता था । कमजोर होने के बाद भी अपनी ड्यूटी पूरी मुस्तैदी से निभा रहा था । ठीक चार दिन पहले । शेरा का खाना पीना बिलकुल छूट गया था । अब वह लडखडा कर बडी मुश्किल से
मल मूत्र त्याग के लिये जा पाता था । वह चलते में गिर पडता था । उसे सहारा देना पडता था । और अक्सर उठाकर लाना पडता था । वह पानी तक नही पीता था । और बुलाने पर उदास भाव से देखता था । मानों ये शिकायत करने में भी उसे ग्लानि हो रही हो कि पहले तुम लोगों ने कोई ध्यान नहीं दिया । अब शायद इस घर से मेरी विदाई का वक्त आ गया । अब मैं क्या कर सकता हूं ?
दो दिन पूर्व । उसे बेहद दिक्कत होने लगी । अपने ऊपर भिनभिनाती मक्खियों को भी उडाने में वह असमर्थ
हो गया था । और बैठने में भी गिर पडता था । मैंने एक पतला कपडा उसको ओडा दिया और टेबल फ़ेन उसके पास लगा दिया । तीन दिन से उसकी आवाज निकलनी बन्द हो गयी । और अब वह सिर्फ़ इस कष्टदायक जीवन से छुटकारा पाने के लिये मौत का इंतजार कर रहा था । आखिर 30 जुलाई को सुबह 11 बजे जब मैं कम्प्यूटर पर बैठा था । मुझे उसकी हल्की सी डरावनी आवाज सुनाई दी । सम्भवतः उसके लेने वाले आ गये थे । मां ने पिताजी से कहा । देखना । लगता है । शेरा चला गया । हम दोनों लोग तेजी से उसके पास पहुंचे । उसकी सांसे थम चुकी थी । और हम अपनों से बेगाना हुआ वह अग्यात यात्रा पर हमें बिना बताये ही चला गया था । मेरे घर के पीछे ही कच्ची जमीन में उसको समाधि दे दी गई । तब उसके हमेशा के लिये चले जाने के बाद हम सबको उसकी याद आ रही थी । इधर उधर से आता दिखाई देने वाला शेरा आज कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा था । उसकी रस्सी एक तरफ़ पडी थी । उसकी सारी चीजें एक तरफ़ पडी थीं । पर उनको इस्तेमाल करने वाला किसी अग्यात देश को जा चुका था ।

1 टिप्पणी:

अंकित ने कहा…

ओह! आँखो में आँसू आ गये |

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